14 साल बाद भी नहीं मिल सका जमीन का पट्टा
रीवा | लगभग 14 साल पहले कर्मचारियों के लिए उनके आवास बनाने की योजना चलाई गई थी। जिसमें 160 कर्मचारियों के आवास के लिए समान मोहल्ले में 7 एकड़ भूमि चयनित की गई थी। ताज्जुब की बात यह है कि कर्मचारियों के आवास के सपने को तोड़ते हुए शासन ने ही उक्त जमीन पर संबल योजना के हितग्राहियों के नाम वहां पट्टा करा दिया। जबकि कुछ वर्ष पहले 82 कर्मचारियों को यहां पर जमीन आवंटित की गई थी।
बताया गया है कि 160 कर्मचारियों से 2-2 लाख रुपए आवास हेतु लिए गए थे। मगर 14 साल बाद भी उन्हें अपना घर नहीं मिल पाया। बल्कि उनकी जमीन पर अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर अपने नाम संबल योजना के तहत पट्टा करा लिया। कर्मचारियों के आवास का सपना संजोये कुछ अब बुजुर्ग हो गए हैं तो कुछ लोगों की मौत भी हो चुकी है।
बताया गया है कि 2006-07 में सरकार की ओर से नोटीफिकेशन जारी किया गया था जिसमें रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए कॉलोनी बनाने का प्रारूप तैयार किया गया। हाउसिंग बोर्ड को इसके विकास के लिए निर्देश मिले थे और कर्मचारियों की ओर से आवेदन भी किए गए। मगर पिछले 14 साल से सरकार की उदासीनता के चलते यह मामला अटका रहा। जबकि रिटायर्ड कर्मचारियों की ओर से कई बार प्रयास किया गया तो पत्राचार भी प्रारंभ किया गया था।
आवास निगम को काम मिलने के बाद थम गई योजना
हाउसिंग बोर्ड को कॉलोनी विकसित करने के लिए कर्मचारी आवास निगम की ओर से राशि दी गई थी। जिसमें करीब साढ़े 3 करोड़ समान मोहल्ले में खर्च किए गए। लगभग सात एकड़ 23 भूखण्ड में सड़क, नाली और बिजली के खम्भों की व्यवस्था की गई। तत्पश्चात आवास निगम भोपाल को कार्य हैण्डओवर कर दिया गया। मगर तब से अब तक कर्मचारियों के आवास के संबंध में शासन की तरफ से कोई भी कार्रवाई नहीं की गई।
82 कर्मचारियों से वसूले थे 2-2 लाख रुपए
तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग के 160 लोगों से 2 लाख प्रति कर्मचारी की दर से राशि जमा करा ली गई। पांच साल पूर्व 82 लोगों को भूखण्ड आवंटित कर दिए गए, नक्शा सौंप दिया गया लेकिन कब्जा नहीं दिलाया गया। आज भी कर्मचारी एवं उनके परिजन अपने हिस्से की जमीन के लिए अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। तो बहुत से कर्मचारियों ने आवास की उम्मीद छोड़ दी है। तो कई ऐसे भी हैं जो स्वर्ग सिधार चुके हैं। कुल मिलाकर शासन, प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण रिटायर्ड कर्मचारी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।