अभी भी कार्यकर्ताओं के बीच बरकरार है 'दिग्गी राजा' का जलवा
सतना | बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के फायरब्रांड नेता माने जाने वाले दिग्विजय सिंह निजी यात्रा पर सतना पहुंचे। बेशक प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई हो बावजूद इसके वे अभी भी कार्यकर्ताओं के बीच कांग्रेस के अन्य नेताओं की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी नजर आते हैं।
इसका उदाहरण उनके मैहर, सतना व चित्रकूट में हुआ निजी दौरा है। कार्यक्रम की आधिकारिक सूचना संगठन द्वारा जारी न होने के बावजूद जिस प्रकार से कार्यकर्ताओं ने उनका जगह-जगह स्वागत किया उससे स्पष्ट है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के दिल में अभी भी उनका राज है। हालांकि प्रदेश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर अपनी पकड़ का प्रमाण उन्होने सितंबर 2018 के उस दौरे में भी दिया था जब उन्होने विधानसभा चुनाव के ऐन पूर्व एक दशक बाद प्रदेश की सक्रिय राजनीति में वापसी की थी।
वर्ष 2018 तक प्रदेश की कांग्रेसी राजनीति में राजनैतिक वनवासी की तरह रहे दिग्विजय सिंह प्रदेश की पालिटिकल पिच पर जब वर्ष 2018 में उतरे तो उनके कार्यक्रमों में कांग्रेस की तीन पीढ़ियां नजर आर्इं थीं। नए व पुराने कांग्रेसियों के साथ इसमें वे कांग्रेसी भी थे जिन्होने कभी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर राजनीति की थी। बेशक भाजपाई चुनाव के दौरान अभी भी उनके कार्यकाल की सड़क, बिजली जैसी समस्याओं की याद दिलाकर कांग्रेस की घेराबंदी करते रहे हों ,लेकिन कार्यकर्ताओं में उनका क्रेज विंध्य में अभी भी बरकरार है। ऐसे में विपक्षी दल भले ही उन्हें जनता के बीच जनप्रिय मानने पर गुरेज करते हों पर संगठन में वे अभी भी प्रदेश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में शुमार हैं।
संभवत: यही कारण है कि हाईकमान ने उनकी संगठनात्मक व समन्वय बनाने की क्षमता को देखते हुए उन्हें प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति का अध्यक्ष बनाया है जिसका काम राज्य के सभी नेताओं को एकजुट करना है। उनकी संगठनात्मक व कमलनाथ से तालमेल बनाकर काम करने की क्षमता को प्रदेशवासी विस चुनावों में देख भी चुके हैं, जब कांग्रेस ने डेढ़ दशक बाद सत्ता का स्वाद चखा था। अब देखना यह है कि वे अपनी चाणक्य की भूमिका का निर्वहन कर क्या संगठन को प्रदेश में इतना सक्रिय व सशक्त बना पाएंगे कि कांग्रेस आगामी निकाय चुनावों में सफलता का परचम लहराकर प्रदेश में राजनीति के एक नए अध्याय की शुरूआत कर सके।
अब कितनी कारगर होगी यात्रा
दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। साल 1993 में वह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद वह 1998 में भी सरकार बनाने में कामयाब हुए, लेकिन साल 2003 के चुनाव में उमा भारती से मात खाने के बाद अपना वचन पूरा करते हुए प्रदेश की राजनीति से दूरी बना ली थी। दरअसल उस दौरान चुनाव प्रचार के दौरान ही दिग्विजय सिंह ने कहा था कि यदि उमा भारती चुनाव जीत गईं तो वह 10 साल तक चुनाव नहीं लड़ेंगे और मध्यप्रदेश की राजनीति में सीधा दखल नहीं रखेंगे। चुनाव में उनकी हार हुई और जुबान के पक्के दिग्विजय राज्य की राजनीति से अलग हो गए., लेकिन राजनीति में वह सक्रिय रहे। कांग्रेस महासचिव रहने के दौरान उन्हें कई राज्यों की जिम्मेदारी मिली जहां उन्होंने मिला-जुला प्रदर्शन किया। साल 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले सबकी निगाह दिग्विजय सिंह पर टिकी हुई थीं।
उन्होने उस दौरान प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने के पूर्व नर्मदा यात्रा की थी। हालांकि नर्मदा यात्रा के दौरान उन्होंने कोई राजनैतिक बयान नहीं दिया था लेकिन, नर्मदा यात्रा के दौरान दिग्विजय ने शिवराज सरकार की नाकामियों का पूरा डेटा तैयार किया था जो विधानसभा चुनाव में रामबाण साबित हुआ था।
हालांकि इस मर्तबा की यात्रा में दिग्विजय सिंह फायरब्रांड नेता की तरह नजर आए और केंद्र व प्रदेश सरकार की नाकामियों व नीतियों पर जमकर बरसे। भाजपा के शीर्ष नेताओं को उन्होंने झूठ बोलने वाला बताया तो किसान बिल को लेकर विदेशी हाथों में खोलने का आरोप भी लगाया। अब निकाय चुनावों की दुदुंभी बजने जारही है ऐसे मेंयह देखना दिलचस्प होगा कि पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह की यह यात्रा निकाय चुनावों के लिए कांग्रेस को कैसी संजीवनी देती हैं।