दिव्य विचार: जोड़ो मत, छोड़ना सीखो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: जोड़ो मत, छोड़ना सीखो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि छोड़ो। क्या छोड़ो? जो-जो तुमने ग्रहण कर रखा है, उसे छोड़ो। अब थोड़ा देखो आपने अपने साथ क्या-क्या जोड़ा है? जो-जो चीजें आपने अपने साथ जोड़ी हैं, उन्हें आप छोड़िए। थोड़ा अपने अन्दर झाँककर देखिए, क्या जोड़ा? जब हम पैदा हुए थे तो हमारे साथ क्या था? जन्म लेने के बाद मनुष्य अपने जीवन में क्या- क्या जोड़ा? थोड़ा देखो, जिस समय हमने जन्म लिया था, हमारी स्थिति क्या थी? थोड़ी कल्पना करो, विचार करो। जब हम जन्म लिए खाली हाथ आए, हमारे पास कुछ नहीं था और उस पल हमारा मन भी बड़ा निर्विकार था। लेकिन जैसे-जैसे हमने अपने जीवन को आगे बढ़ाया, हमने होश सम्हाला, हमारे साथ बहुत सारी जुड़ती गईं, जुड़ती गई, जुड़ती गई और जुड़ने के क्रम में हमने अपने साथ बुराइयाँ जोड़ीं, हमने अपने साथ पाप जोड़ा, हमने अपने साथ पैसा जोडा। हमने न जाने कितनी- कितनी चीजों को जोड़ लिया। निखार तभी आएगा जब तुम छोड़ना शुरु करोगे। जो जोड़ता है, वह सीमित होकर रह जाता है और और आज भी जोड़ते जा रहे हैं। सन्त कहते हैं- केवल जोड़ते रहोगे तो बर्बाद हो जाओगे, जीवन में जो छोड़ता है, वह अपने जीवन को व्यापक बना लेता है। हमें जोड़ने और छोड़ने की इस प्रक्रिया को समझना चाहिए। सबसे पहले आपके जोड़ने की बात है तो आपने धन जोड़ा। हर आदमी धन जोड़ता है। जीवन की आदि से लेकर आखिरी तक धन जोड़ने की प्रवृत्ति मनुष्य की बहुत प्रगाढ़ता से बनी रहती है, बल्कि मैं तो यह कहता हूँ, धन जोड़ने की चाहत मनुष्य की बहुत अधिक प्रबल होती है। कदाचित मनुष्य के भीतर वासना का विकार उतना प्रभावी नहीं होता, जितना की धन की लालसा होती है। वासना मनुष्य के मन में एक उम्र के बाद प्रकट होती है और उम्र ढल जाने के बाद धीरे-धीरे खत्म हो जाती है लेकिन धन की लालसा, धन का जुड़ाव एक छोटे से बच्चे के पास भी होता है और कब्र में पाँव अटक जाने तक वह बना रहता है।