दिव्य विचार: समय सार को जीवन में उतारो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: समय सार को जीवन में उतारो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि सामने वाला मुझ पर अटैक न कर दे, सामने वाला मेरा नुकसान न कर दे, वह मुझसे ईर्ष्या रखता है, हमेशा मेरे प्रति कुचक्र चलता रहता है, मैं किसी का शिकार न बन जाऊँ, मुझे कोई शिकार न बना दे, मुझे कोई नुकसान न कर दे। दिमाग में यह बातें आती हैं कि नहीं आती हैं? प्रायः किसके प्रति आती हैं? अड़ोस-पड़ोस के प्रति, अपने भाई-बन्धुओं के प्रति, अपने सगे-सम्बन्धी के प्रति आती हैं। उस वजह से आदमी घबड़ाया हुआ रहता है। अरे। मेरा पुण्योदय होगा तो कोई मेरा कुछ बिगाड़ सकेगा क्या? प्रद्युम्न के ऊपर विद्याधर ने चट्टान रख दी थी, छह दिन के बच्चे का बाल बाँका नहीं हुआ। वाह ! श्वास से चट्टान हिल रही है। अपहरण किया, पापोदय के कारण, लेकिन पुण्य था तो उस छह दिन के बच्चे पर बड़ी-भारी चट्टान रख दी गई तो भी कुछ नहीं हुआ और तुरन्त लालन-पालन करने वाले दूसरे माँ-बाप मिल गए। क्या हुआ? कौन क्या बिगाड़ पाएगा तुम्हारा? कोई दूसरा बिगाड़ सकता है? विमान से हनुमान गिर गए, पैदा हुए घण्टाभर हुआ था। क्या हुआ? शिला चूर हो गई या हनुमान ? बजरंगबली बन गए। किसने क्या बिगाड़ा? एक गाढ़ा श्रद्धान करो, पर मेरा बिगाड़ने वाला नहीं है। अगर मेरा कोई बिगाड़ करता है तो मेरा अशुभ परिणाम करता है और कोई नहीं कर सकता। अपने परिणामों को मैं सम्हालूँ, ये दृष्टि रखो, डर आएगा? और गहरे जाओ तो मेरी आत्मा को तो कोई छू भी नहीं सकता है, मेरा बिगाड़ और सुधार करने वाला पैदा ही नहीं हुआ है। समयसार को जीवन में उतारो, कभी भय नहीं होगा, अभय होगा आनन्द में जीएगा। वस्तुस्वरूप को आत्मसात करने वाले मनुष्य के जीवन में सहजता होती है और वस्तु स्वरूप के अश्रद्धानी व्यक्ति के जीवन में हर पल शंका रहती है। परलोक का कोई भय नहीं मरकर कहाँ जाऊँगा? आजकल यह भय लोगों में नहीं है। मरेंगे, तब देखा जाएगा, नरक भी जाएँगे तो चले जाएँगे, अभी तो आनन्द ले लो। कहते हैं उस परलोक के भय से क्या होगा?