दिव्य विचार: जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि इहलोक अच्छा तो परलोक अच्छा, इहलोक बुरा तो परलोक बुरा। इसलिए मैं तो अपने उपदेशों में कभी परलोक की चर्चा ही नहीं करता हूँ। आपने इतने दिन सुना, कुछ लोग वर्षों से सुन रहे हैं, मैं कभी आपको स्वर्ग पहुँचाने की बात नहीं करता, क्योंकि स्वर्ग पहुँचाने के लिए मुझे आपको मारना पड़ेगा। बिना मरे स्वर्ग जाओगे क्या? आप चाहते हो कि हम आपको स्वर्ग पहुँचा दें? गलत हो जाएगा न? हम आपको स्वर्ग पहुँचाने के लिए उपदेश नहीं देते, जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाने के लिए उपदेश देते हैं। स्वर्ग जाना तो मरने के बाद होगा, पता नहीं होगा भी या नहीं होगा, लेकिन यदि जीते जी तुमने अपने जीवन को स्वर्ग बना लिया तो तय मानना तुम जहाँ खड़े हो, वहाँ स्वर्ग बन जाएगा। नरक की कोई बात ही नहीं है। सम्यग्दृष्टि अपनी क्रिया और चर्या के प्रति निश्चिन्त रहता है। एग्जाम देने के बाद देवी-देवता के चरणों में माथा टेकने वाले कौन से बच्चे होते हैं? पढ़ने वाले या पढ़ाई से जी चुराने वाले ? जिसने अच्छे से पढ़ाई की, अच्छा पेपर दे दिया, वह कभी अपने रिजल्ट के लिए शंकित होता है क्या? आजकल तो एक से एक बच्चे हैं। एक बच्चा भगवान् से प्रार्थना कर रहा था- भगवन् ! मुम्बई को भारत की राजधानी बना दो। एक युवक ने पूछा- अरे भैया ! भारत की राजधानी दिल्ली है, भगवान् से मुम्बई को राजधानी बनाने की प्रार्थना क्यों कर रहा है? और राजधानी बन भी जाए तो तुझे क्या मिलेगा? बोला- किसी को और कुछ मिले या न मिले, मुझे फायदा हो जाएगा। क्या फायदा हो जाएगा? बोला- मैंने गलती से मुम्बई को भारत की राजधानी लिख दिया है, मैं पास हो जाऊँगा। क्या हुआ? अगर हमने पेपर अच्छा किया है तो रिजल्ट जब डिक्लेयर होगा तो होगा, वैल्यूएशन तो लिखने वाले पहले ही कर देते हैं। जिसका जीवन अच्छा है, उसके हर कदम पर स्वर्ग है, उसे नरक जाने की कोई बात ही नहीं है, इसलिए परलोक भय भी नहीं, यहाँ भी अभय का सूत्र मिल गया।