दिव्य विचार: न शरीर स्थायी है, ना ही संपत्ति- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बहुत प्रेरक बात है। यह भ्रम टूटना चाहिए। पहला भ्रम शरीर में आत्मा की बुद्धि रखना, दूसरा भ्रम पर में सुख मानना, तीसरा भ्रम नश्वर को शाश्वत मानना। तुम्हारे पास क्या है जो स्थायी है? कुछ है। आप लिखते हो- 'स्थायी पता'। जो स्थायी है उसका पता नहीं और पता स्थायी हो गया। क्या स्थायी है? देखो ! जब मनुष्य भङ्गुर को स्थायी मानता है और वह टूटता है तो उसे तकलीफ होती है। क्षणभङ्गुर को क्षणभङ्गुर माने और वह टूट जाए, फूट जाए, तो कोई फर्क नहीं पड़ता। आपने देखा होगा- छोटे बच्चे बेलून (गुब्बारे) से खेलते हैं। खेलते खेलते अगर उनका बेलून फूट जाता है तो बच्चा रोता है। तब बड़े क्या कहते हैं? अरे ! बेलून तो फूटने के लिए ही होते हैं, दूसरे आ जाएँगे। क्यों? बच्चा रो रहा है, आप नहीं रो रहे हो, क्योंकि आपको पता है कि यह नाशवान है। बच्चे को पता है कि वह स्थायी है। बच्चों के फुग्गे तो रोज फूटते हैं, छोटे बच्चों के फुग्गे फूटने पर तुम बच्चों को समझाते हो। सामान सौ बरस का, पल की खबर नहीं अरे ! संसार के जितने संयोग हैं, वह एक फुग्गे की तरह हैं, फूट रहा है तो रोते क्यों हो? जब तक अनुकूल संयोग की हवा उसके अन्दर है, तब तक वह फूला-फूला दिखेगा, संयोग बदेलेंगे तो फूट जाएगा। रोओ मत। संसार का हर एक संयोग एक बेलून की तरह है, पानी के बुलबुलों की तरह है, अस्थायी है, मॉमेण्ट्री है, क्षणक्षयी है। इसमें उलझो मत, इसको शाश्वत मत मानो। न शरीर स्थायी है, न सम्पत्ति स्थायी है, न सम्बन्धी स्थायी हैं। संसार का कोई भी संयोग स्थिर नहीं है। कुछ भी स्थायी नहीं है, सब क्षणक्षयी है। जब तक इसको स्थायी मानोगे, तब तक दुःखी बने रहोगे। महाराज ! क्षणक्षयी है तो क्या करें? छोड़ दें? छोड़ने की बात नहीं कह रहा हूँ, इन्हें स्थायी मानने का भ्रम छोड़ो और जब तक तुम्हारे पास है, उसका उपयोग करो, उपभोग करो।