दिव्य विचार: जैसी रूचि वैसे गुण होंगे विकसित- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: जैसी रूचि वैसे गुण होंगे विकसित- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज मैं आपसे बात रुचि की करूँगा। हमारे सम्पूर्ण जीवन में हमारी रुचि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मनुष्य की जैसी रुचि होती है, उसके जीवन का झुकाव वैसा होता है और उसके बदौलत वह अपना जीवन वैसा ही बना लेता है। हर व्यक्ति की अलग-अलग रुचि होती है। अलग-अलग रुचि के अनुसार अलग- अलग प्रवृत्ति भी होती है। एक विचारक ने लिखा कि सभी प्रकार के गुण और दोष मनुष्य की रुचि के अनुरूप गतिमान होते हैं। गुण हो या दोष हमारी जैसी रुचि हो, उसी अनुरूप बढ़ते हैं। अगर हमारी रुचि अच्छी है तो हमारे गुणों में अभिवृद्धि होगी, उसे कोई रोक नहीं सकता। लेकिन बुरी रुचि हो तो हमारा बिगाड़ हुए बिना नहीं रह सकता। आज बात मैं रुचि की करता हूँ। रुचि शब्द किसी से अनजाना नहीं है, बड़ा परिचित शब्द है। लेकिन हम इसे थोड़ा व्यापक सन्दर्भ में देखें, सामान्यतः जब भी रुचि की बात आती है तो रुचि का अर्थ होता है विश्वास, लग्न, अभिलाषा, इच्छा, पसन्द, दिलचस्पी, उत्कण्ठा, उत्सुकता यह सब रुचि के अर्थ में प्रयुक्त शब्द हैं। मनुष्य का जिस किसी के प्रति जैसा विश्वास होता है तो उस विश्वास के अनुरूप उसकी रुचि होती है। जिसे वह पसन्द करता है, उसकी तरफ उसका झुकाव होता है। जिस चीज में उसकी रुचि होती है, उसके प्रति प्रबल उत्सुकता, उत्कण्ठा बनी रहती है, एक अलग प्रकार की दिलचस्पी होती है। कई बार आपके जीवन में ऐसे प्रसंग आते हैं कि कई कार्य को देखकर आप बड़ा रस लेते हैं, रुचिपूर्वक सुनते हैं और कई कार्य ऐसे होते हैं, जिनके प्रति आपकी कोई रुचि नहीं होती तो आप सीधे- सीधे शब्दों में कह देते हैं कि मेरी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं। निश्चित तौर पर किसी कार्य में आपकी दिलचस्पी है या किसी में आपकी रुचि नहीं है। किसी क्षेत्र में आपकी रुचि है या किसी क्षेत्र में आपकी रुचि नहीं है।