दिव्य विचार: अपनी सोच में बदलाव लाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: अपनी सोच में बदलाव लाएं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि पहला परिवर्तन सोच का होना चाहिए। अगर सोच में यह बदलाव घटित हो गया तो जीवन में एक अलग ही रस प्रकट होगा, आनन्द आएगा। गुरुओं के सान्निध्य में आने से पहले जैसी मेरी सोच थी, उनके सम्पर्क में आने के बाद भी वही सोच बनी रही, प्रवचन सुनने से पहले जितनी मेरी सोच थी, नियमित प्रवचन सुनने के बाद भी हमारी सोच जहाँ की तहाँ बनी रही, तो यह तो चिकने घड़े पर पानी डालने वाला हाल हो गया। नहीं, सोच में परिवर्तन आना चाहिए। सोच के परिवर्तन के बाद आता है और परिवर्तन होने के बाद जीवन में नए निखार लाना चाहिए। परिष्कृत करने का प्रयत्न करना चाहिए। जिसका जीवन प्रभावित होता है वही परिवर्तित होता है। जो परिवर्तित होता है वही परिष्कृत होता है। यह एक कड़ी है। इस तरीके से चलेंगे तो जीवन में एक अलग प्रकार की अनुभूति होगी। बन्धुओं ! अमूढदृष्टित्व को समझो। उपासना की मूढ़ता को छोड़ो, आध्यात्मिक मूढ़ता से मुक्ति पाओ और जीवन में कुछ परिवर्तन घटित करने का प्रयत्न करो। निश्चित ही वह हमारे जीवन की एक उपलब्धि होगी। भगवान् के जीवनचरित्र को पढ़ो कभी। वह प्रभावित हुए, फिर परिवर्तित हुए, फिर उनका परिष्कृत रूप तीर्थकर का बन गया। आज तुम प्रभावित हो गए, परिवर्तित होओगे, कल परिष्कृत होकर भगवान् आदिनाथ की जगह अपना स्थान बनाने के अधिकारी बन जाओगे। जीवन का कल्याण किसी की कृपा से नहीं होगा। जीवन का कल्याण तो स्वअर्जित पुरुषार्थ का फल है, उसके लिए हमें खुद को तैयार करना पड़ेगा। हम अपनी मानसिकता वैसी तैयार रखें। अपने भीतर की भाव-भूमिका को कुछ इस तरह से तैयार करें कि जो हमारे कल्याण का बीज बन सके और जीवन में नया परिवर्तन घटित कर सके।