दिव्य विचार: खतरों का डटकर सामना करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आत्मश्रद्धानी बनिए। आत्मबोध से भरे अपनी आत्मा की पहचान करें, मन में न कोई भय रहेगा न शंका। मेरी आत्मा क्या है, उसे जानिए। भविष्य को लेकर लोगों के मन में शंका होती है- एक तो अपने कैरियर की और दूसरा कहीं हम मर न जाएँ, कही हमें बीमारी न आ जाए, यह असुरक्षा। शंका का तीसरा रूप- खतरा । सन्त कहते हैं- खतरे से सावधान होना समझदारी है और खतरे की शंका में उलझ जाना पागलपन। अगर आप अपनी गाड़ी को डेंजर जोन में ले जा रहे हो तो उस समय दो स्थितियाँ बनती हैं, डेंजर जोन से जो गाड़ी लेकर चलते हैं, उनके साथ दो स्थितियाँ बनती हैं- एक स्थिति तो यह है कि सावधानी पूर्वक गाड़ी चलाओ और कुशलता से इस पार से उस पार हो जाओ। सावधानी पूर्वक गाड़ी चलाओ और कुशलता से इस पार से उस पार चले जाओ ऐसा सोचने वाला व्यक्ति चला जाता है। और दूसरा बड़ा डेंजर है, बड़ा डेंजर है, बड़ा डेंजर है, बड़ा डेंजर है तो क्या होगा, दुर्घटना नहीं होनी होगी तो हो जाएगी, जो नहीं होना है सो हो जाता है। जीवन में खतरा है, ठीक है उसका सामना करेंगे। खतरा हमने मोल नहीं लिया लेकिन खतरा आ गया तो सामना करेंगे। दुनिया में बहुत सारे लोग हैं, जो बड़े खतरनाक दौर से गुजरे। सबसे पहली बात बोलता हूँ- हमारा तो जन्म ही खतरे से हुआ। बच्चा पैदा कैसे होता है? कितना संघर्ष करना पड़ता है बच्चे को तब वह जन्म लेता है। जिसका जन्म खतरे से हुआ, जिसका जन्म संघर्ष से हुआ, वह अगर खतरे से घबराए तो मतलब क्या है। खतरे से सावधान रहो, संकट के आगे सावधान हो और समझदारी से काम करो पर उसकी शंका में कभी मत उलझो। ठीक है, यहाँ वही चारो बातें अपनाइए। आपमें आत्मविश्वास होगा, आपकी सोच सकारात्मक होगी, कर्मसिद्धान्त पर विश्वास होगा और आपकी आत्मा का बोध होगा तो कोई खतरा नहीं।