मानव अधिकार दिवस: कितना सुरक्षित है मानव अधिकार

सतना | आज मानव अधिकार दिवस है। आज पुन: सरकारी अफसर और स्वयंसेवी संस्थाओं  के नुमाइंदे मानव अधिकार संरक्षण की बड़ी बड़ी बातें करेंगे। ऐसा हर साल होता है, लेकिन क्या  वर्तमान दौर में सचमुच मानव अधिकार सुरक्षित हैं? मानव अधिकार संरक्षण को लेकर जितनी ज्यादा बातें हो रही हैं उतने ही अधिक मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में बढ़ोतरी भी हो रही है। कभी मजदूरों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते देखा जाता है तो कभी किसानों को अपने श्रम व उपज का सही मूल्य हासिल करने के लिए सड़क पर उतरना पड़ता है।

विडंबना तो यह है कि, बेटियों को अपनी ही रक्षा के लिए सड़कों पर मोमबत्ती जलाकर जुलूस निकालना पड़ता है। सीटू के प्रदेश महासचिव प्रमोद प्रधान कहते हैं कि मानव अधिकार संरक्षण की बातें सरकार कितनी भी कर ले लेकिन सच तो यह है कि मानव अधिकार का सर्वाधिक उल्लंघन सरकारें ही करती हैं। प्रधान कहते हैं कि यदि सरकारी नीतियों से रोजगार जा रहे हों , श्रम का दाम न मिल रहा हो तो यह भी मौलिक अधिकारों का हनन है, जिस पर सरकार को गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए। 

कहां है आयोग मित्र
मानव अधिकार को लेकर सरकार कितनी सजग है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सतना में अब तक आयोग मित्र तक आयोग नहीं बना सका है । गौरतलब है कि मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग हर जिले में अपने प्रतिनिधि के बतौर आयोग मित्र की नियुक्ति करता है। ये प्रतिनिधि आयोग के आंख, नाक-कान बनकर खबरची का काम भी करते हैं। वे जिला प्रशासन के साथ समन्वय भी करते हैं। इनके न होने से आयोग को जिले की सूचनाओं के लिए अखबारों की खबरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। आयोग समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के जरिए मानव अधिकार हनन के मामलों पर स्वत: संज्ञान भी लेता है।

मानव अधिकार आयोग सतना के लिए 'मित्र’ भी नहीं तलाश पा रहा। इस कारण आयोग तक जिले में मानव अधिकार उल्लंघन के मामले अखबारों की खबरों में ढूंढना पड़ रहा है। आयोग द्वारा जिला स्तर पर 5 से 7, तहसील में 3-5, विकासखंड स्तर पर 2 एवं गांव में एक-दो मित्र नियुक्त किए जाते हैं। समाजसेवा से जुड़े लोगों को कलेक्टर की अनुशंसा पर आयोग मित्र के रूप में अधिकृत करता है। इन प्रतिनिधियों को आयोग की ओर से किसी तरह का पारिश्रमिक नहीं दिया जाता।

ये प्रतिनिधि कई बार छोटे मामलों को जिला प्रशासन की मदद से स्थानीय स्तर पर ही सुलझाने का प्रयास करते हैं। गंभीर मामलों को आयोग मित्र अपनी रिपोर्ट के साथ भोपाल मुख्यालय भेज देते हैं। यह विडंबना ही है कि सतना में आयोग मित्र नहीं है अलबत्ता अंतर्राष्ट मानव अधिकार एसोसिएशन जैसे निजी संगठन हैं जो मानव अधिकार के मामलों पर नजर रख रहे हैं। 

 श्रम न्यायालयों को समाप्त करना श्रमिक  के  अधिकारों का हनन
भारत सरकार द्वारा श्रम कानूनों में परिवर्तन कर श्रमिक हितों पर किए जा रहे कुठाराघात को श्रमिकों का मानव अधिकारी हनन बताते हुए लेबर बारएसोसिएशन ने राष्टपति के नाम ज्ञापन सौंपा है। गौरतलब है कि भारत सरकार द्वारा श्रम नियमों में परिवर्तन करते हुए औद्योगिक संबंध संहिता 2020 लागू की गई है जिसके नियम बनाने हेतु राज्य सरकारों को कहा गया है इस प्रावधान में अभी जो श्रम न्यायालय चल रही हैं उनको समाप्त कर उनके अधिकार श्रम आयुक्त को दिए जाएंगे । इसके उपरांत औद्योगिक ट्रिब्यूनल बनाई जाएगी ,लेकिन इनकी संख्या राज्यों में सीमित होगी।

लेबर बार एसोसिएशन के संरक्षक संतोष खरे ,अध्यक्ष विष्णु शरण  खरे,  सचिव अनिल निगम ,अरुण अवस्थी , महेंद्र सिंह, राज ललन सिंह ,सह सचिव राजीव खरे ,सुनील  श्रीवास्तव ,कोषाध्यक्ष पुष्पेंद्र खरे ,अनिल गौतम  एवं कार्यकारिणी सदस्य ने कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपते हुए  कहा है कि श्रम न्यायालयों के स्थान पर ही न्यायाधिकरण स्थापित किए जाएं ताकि श्रमिकों को यथावत न्याय मिलता रहे अन्यथा श्रमिक न्याय से वंचित होगा। 

1993 में अमल में आया था मानवाधिकार कानून
भारत में मानवाधिकार कानून 28 सितंबर, साल 1993 को अमल में आया था। इसके बाद अक्तूबर, साल 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया। पहली बार विश्व मानवाधिकार दिवस की घोषणा 10 दिसंबर, साल 1948 को संयुक्त राष्ट्र ने की थी। संयुक्त राष्ट्र असेंबली ने ये घोषणा विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी करने के बाद की। कानून द्वारा संरक्षित इन अधिकारों का प्रत्येक मनुष्य स्वाभाविक रूप से हकदार है।  मानवाधिकार को अगर प्रकृति प्रदत्त अधिकार कहा जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि किसी भी इंसान का आजादी, बराबरी और सम्मान के साथ रहना मानवाधिकार है। अगर मानव के इन अधिकारों में किसी प्रकार की बाधा आती है तो उसे मानवाधिकारों का उल्लंघन माना जाता है।

हमे संगठन की ओर से अभी कुछ समय पूर्व ही दायित्व मिला है जिसमें हम तीन चार मामलों को प्रशासन तक पहुंचा चुके हैं। कोरोनाकाल में मानव अधिकारों का क्ष्रण हुआ है जिसके चलते हमारी टीम लगातार नजर रखे रही। इस दौरान हमने भोजन के अधिकार विषय पर काम किया। 
मनु सोनी, जिला सचिव अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार एसोसिएशन 

यह किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है जिसकी रक्षा सरकार का कर्त्तव्य है। जो समितियां मानव अधिकार की रक्षा के लिए बनाई गई हैं सरकार ने उनकी मानीटरिंग की व्यवस्था नहीं की है नतीजतन वे काम नहीं कर रही हैं। प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में मानव अधिकार सबसे अंतिम पायदान पर है। 
एड. मुख्तार अहमद सिद्दिकी

फैक्ट्रियों व कारखानों में श्रमिकों को श्रम का उचित मूलय न देना व उपज का सही दाम न मिलना भी एक प्रकार से  मानव अधिकार का उल्लंघन है जिस पर कोई सरकार ध्यान नहीं देती। श्रमिकों को श्रम का सही मूल्य मिले और वह सम्मान तभी मानव अधिकार सुरक्षित रखने का दंभ सरकारें भर सकती हैं। 
प्रमोद प्रधान, राष्ट्रीय सचिव, सेंटर आफ इंडियन ट्रेड यूनियन