ट्रैक पर 7 माह बाद फिर दिखा बाघ
सतना | मुंबई-हावड़ा रेलखंड के सतना-मानिक पुर रेल सेक्शन के बीच एक साल बाद पुन: वनराज ट्रैक पर नजर आया । बाघ को ट्रैक पर मझगवां-टिकरिया रेल सेक्शन के बीच इंटवां डुंडैली स्टेशन के निकट रेल पांतों की पेट्रोलिंग कर रहे पेट्रोलमैन द्वारा देखा गया। ट्रैक के आसपास वनराज की मौजूदगी की खबर लगते ही रेल प्रशासन ने मझगवां-टिकरिया रेलवे स्टेशन के बीच काशन आर्डर जारी करते हुए रेलगाड़ियों को न्यूनतम रफ्तार में चलाने के निर्देश दिए हैं।
रेलवे ने इसकी सूचना वन विभाग के अधिकारियों को भी दी है जिसके बाद वन विभाग बाघ को तलाशने में जुटा है। जानकारी के अनुसार आलोक राज व आलोक आनंद की ड्यूटी इंटवा डुंडैली के निकट के रेल ट्रैक पर मिलान प्वाइंट 1222 पर लगाई गई थी। शुक्रवार-शनिवार की दरमियानी रात 12.10 बजे दोनो पेट्रौलमैन जैसे ही किलोमीटर क्रमांक- 1222/7/8 पर पहुंचे वैसे ही जांच हेतु उन्होने रेल ट्रैक पर टार्च की रोशनी डाली।
टार्च की रोशनी डालते ही दोनो पेट्रोलमैन की तब घिग्घी बंध गई जब उन्होने सामने ट्रैक पर जलती आंखों से घूरते हुए बाघ को देखा। अचानक सामने बाघ को देखकर जड़ हुए पेट्रोलमैन बचाव का रास्ता सोच ही रहे थे कि अचानक अप व डाउन दिशा की ओर से ट्रेनों के अलार्म बजने व आने की आहट मिली। चित्रकूट एक्सप्रेस व एकमालगाड़ी ट्रेन का सायरन सुनते ही ट्रैक पर बैठा बाघ आगे-पीछे देखने लगा। इसका फायदा पेट्रोलमैन ने उठाया और वे सिर पर पांव रखकर मौके से भाग खड़े हुए।
मिलान प्वाइंट पर सुरक्षित पहुंचे अलोक राज व आलोक आनंद की जान में जान आई और उन्होने जीपीएस उपकरण की मदद से घटनाक्रम की जानकारी जबलपुर कंट्रोल को दी। इसके अलावा स्थानीय रेल अधिकारियों व वन विभाग के अधिकारियों को भी सूचित कियागया। सूचना मिलते ही रेल प्रशासन ने चितहरा-टिकरिया के बीच न्यूनतम रफ्तार में ट्रेन चलाने, बाघ की ट्रैक के आसपास की चहलकदमी पर पटाखा फोड़ने व इस सेक्शन में अनवरत अलार्म बजाते हुए ट्रेन चलाने के निर्देश दिए गए हैं।
ट्रैक पर कट चुका बाघ
इसके पूर्व चितहरा स्टेशन के निकट वर्ष 2016 में एक बाघ रेलगाड़ी से कटकर मौत की नींद सो चुका है, जबकि समय-समय पर कई मर्तबा ट्रैक के आसपास बाघ देखा जाता रहा है। अंतिम बार अप्रैल माह में मझगवां स्टेशन के निकट बाघ देखा गया था। बाघ के ट्रैक पर कटकर मरने के बाद बाघों की सुरक्षा के लिए कई प्रावधान तय किए गए थे लेकिन उनमें से किसी प्रावधान का पालन करने या कराने में वन विभाग नाकाम रहा है।