रेत माफियाओं के डर से घबराते हैं गोहटा घाट जाने वाले पर्यटक

रीवा | प्राकृतिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक धरोहरों से भरे जिले के कई ऐसे स्थान जिन्हें पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है परंतु पर्यटन विभाग की उदासीनता के कारण रीवा राज्य स्तर पर भी पर्यटन के रूप में नहीं देखा जाता। तराई के जंगलों में पाषाण प्रतिमाएं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। गोहटा घाट रेत माफिया के साये में गुमनाम होता जा रहा है। जहां धोखे से भी कोई जाना नहीं पसंद करता है क्योंकि टमस नदी में रेत उत्खनन चरम पर है और यहां के क्षेत्रीय निवासी इस कृत्य में संलिप्त हैं।

गोहटा घाट प्राचीन प्रतिमाओं से ज्यादा अवैध उत्खनन के लिए जाना जाने लगा है जबकि यहां दसवीं सदी का प्राचीन शिव मंदिर हुआ करता था जो अब खण्डहर है। गोहटा घाट में दर्जनों की संख्या में प्राचीन काल मूर्तियां थीं और शिवलिंगों की श्रृंखला है। परेशान करने वाली बात यह है कि इस दर्शनीय स्थल में लोग भ्रमण करने से हिचकिचाते हैं क्योंकि पर्यटकों की सुरक्षा करने के लिए यहां कोई व्यवस्था नहीं है। गोहटा जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दूर एवं सतना से सौ किमी की दूरी पर स्थित है जो कि सिरमौर से जवा रोड पर लोकेश्वरनाथ धाम पर्वत के निकट है।

अद्भुत प्रतिमाओं की है श्रृंखला
गोहटा घाट में ऐतिहासिक अद्भुत प्रतिमाओं की श्रृंखला है। यहां ऐसे शिवलिंग हैं जिसमें एक शिवलिंग के अंदर हजार शिवलिंगों का वास है। जिसे सहस्त्र लिंगेश्वर के रूप में जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि यहां मां सीता द्वारा पूजित त्रेता युग कालीन दिव्य शिवलिंग हैं। इसके अलावा शेषनागधारी शिवलिंग, चतुर्मुखी शिवलिंग भी स्थापित हैं। साथ ही भगवान गणेश, नृत्यांगनाओं सहित कई देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं जिन्हें शासन की तरफ से संरक्षण नहीं मिल रहा है। बताया गया है कि यहां महर्षि बाल्मीक का आश्रम हुआ करता था। उसी आश्रम का नाम गोहटा था। यहीं कल्चुरीकालीन मंदिर भी स्थापित है। 

सर्वे में अधिकारियों ने दिखाई थी लापरवाही
15 जुलाई 2015 को गोहटा का सर्वे हुआ था। जिसमें संग्रहालय अध्यक्ष भी मौजूद थे। इसी दौरान योगिनी माता का भी सर्वे हुआ। मगर अधिकारियों ने भूल से योगिनी माता के शैल चित्रों और लोकेश्वरनाथ पर्वत का नाम अनुसूची में जोड़ दिया और शासन की तरफ से लोकेश्वरनाथ पर्वत के लिए नोटीफिकेशन जारी हो गया जबकि सर्वे गोहटा घाट का किया गया था। जिसके बाद योगिनी माता और लोकेश्वरनाथ पर्वत को राज्य संरक्षण स्मारक घोषित कर दिया गया। तब से लेकर अब तक गोहटा घाट की तरफ पर्यटन विभाग, पुरातत्व विभाग की नजर नहीं पड़ी।