दिव्य विचार: आगे बढ़ने के लिए संयमित और सहज रहें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: आगे बढ़ने के लिए संयमित और सहज रहें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि यदि वह संयम विकसित हो गया तो तय मानकर चलना, हम अपने जीवन को नई ऊँचाई देने में समर्थ हो जाएँगे। वह उत्तरोत्तर विकसित होना चाहिए। हमारा व्यवहार वैसा हो ताकि हम संयमित बनें। आजकल इसकी बड़ी कमी होने लगी है, पहले लोग इस संयम के कारण एक दूसरे की मान-मर्यादा रखते थे। अब तो किसी के मुँह में कोई संयम नहीं। वचनों में संयम हो, व्यवहार में संयम हो, प्रवृत्ति में संयम हो। इनमें संयम रहेगा, आप खुद सुखी रहेंगे और आपको कोई दुःखी नहीं कर पाएगा। आप किसी को दुःखी नहीं कर सकेंगे। संयम मनुष्य को प्रतिक्रिया से शून्य करता है। जीवन को आगे बढ़ाने के लिए और सहज बनाए रखने के लिए प्रतिक्रियाविरति का अभ्यास आवश्यक है। प्रतिक्रियानिवृत्ति का मतलब क्या है? कोई रिएक्शन नहीं करना, खासकर नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देना। देखिए-प्रतिक्रिया क्या होती हैं? आपको किसी ने एक अपशब्द बोला, शब्द आपके कान में गए, सपोज, किसी ने आपको कह दिया, गधा कहीं का या कैसा गधा है या वह आदमी तो एकदम गधा है। आपने वह शब्द सुन लिया। अच्छा ! मुझे गधा कहता है, क्या समझ रखा है अपने आपको, बहुत बढ़ गया है। मुझे गधा कहता है औकात दिखा दूंगा उसे गधा कहने की। मुझे गधा कहता है, आने दो मौका मैं बताऊंगा उसे, मुझे गधा कहने वाला कौन होता है। सामने वाले ने केवल एक बार गधा कहा और खुद ने खुद को पांच बार गधा बना दिया। बोलो.... ऐसा आदमी गधा है कि समझदार ? वह कहाँ है? थोड़ा अपने अंदर झॉको और देखो मेरे भीतर कोई ऐसा गधा तो नहीं पल रहा है। एक शब्द कान में गया जैसे शांत-सरोवर में हमने एक कंकर फेंका, उसे वलय, दर वलय व्याप्त होते जाते है, वैसे ही हमारे कान में एक शब्द जाता हे और वह गूंजता रहता है, गूंजते रहता है? चलता रहता है। क्यों? अगर हमने थोड़ा संयम रख लिया तो क्या यह अनुगूँज बनी रह सकती है?