दिव्य विचार: अवचेतन मन पर नियंत्रण करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि मनोविज्ञान की भाषा में यदि हम बात करें तो एक हमारा चेतन मन है तो दूसरा अवचेतन मन। हम जब किसी भी कार्य की शुरूआत करते है तो चेतन मन से करते है और चेतन मन के माध्यम से जो भी कार्य हम करते हैं, उसके संस्कार हमारे अवचेतन मन पर पड़ जाते हैं। चेतन मन चीजों को विचार करके स्वीकार करता है लेकिन अवचेतन मन बिना विचार किए। सबको संग्रहित करता रहता है। एक बार संग्रहित कर ले तो बार-बार वह हमारे चेतन मन को उकसाता रहता है। आज हमारी जो प्रवृत्तियाँ हैं, चेतन मन के कारण कम अवचेतन मन के कारण अधिक हैं। हमारे अवचेतन मन में वह संस्कार जम गए और ऐसे जम गए, ऐसे जम गए, ऐसे जम गए कि उनसे निजात पाना हमारे लिए मुश्किल सा हो गया। लेएककिन कठिन है, असम्भव नहीं। यदि हम जाग जाएँ तो उस पर काफी हद तक नियन्त्रण पाया जा सकता है। हम उसे अपने नियन्त्रण में ला सकते हैं। कैसे बनते हैं संस्कार, जो कालान्तर में हमारी आदत बन जाती है? थोड़ी सी बात हम यहाँ से शुरु करें और फिर आगे बढ़ें। जैसे मान लीजिए, कोई भी गन्दी आदत है, किसी को नशा करने की आदत हुई। जब व्यक्ति पहली बार नशा करने के लिए प्रवृत्त होता है तो कैसे करता है? या तो किसी के दबाव में आकर करता है या किसी के प्रभाव में आकर करता है या अपने दोस्तों यारों की संगति में आकर करता है या घर-परिवार में अपने से बड़ों की देखा-देखी में करता है। किसी ने दबाव डाला, रिक्वेस्ट किया, चलो थोड़ा सा ले लो क्या फर्क पड़ता है? थोड़ा सा ले लो। बार-बार कहे तो शुरुआत में तो हमारा मन उसके लिए स्वीकार नहीं करता कि नहीं; मुझे नहीं करना लेकिन जब बार-बार बार-बार दबाव होता है या संगति का प्रभाव हमारे मन में होता है, एक दूसरे को देखते हैं तो देखते-देखते मन में आता है कि चलो एंजॉय करके देख लो। एक बार आपने लिया और लेने के बाद फिर धीरे-धीरे-धीरे वह आपके अवचेतन मन में संस्कार चला गया।