दिव्य विचार: ऊपर की सजावट पर मत जाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज के सन्दर्भ में बात बहुत प्रासंगिक है। चार बातें आप सबसे कहूँगा-चर्म, मर्म, कर्म और धर्म। हम जब ऊपर-ऊपर से देखते हैं तो हमारी दृष्टि में चर्म आता है। चर्मदृष्टि मतलब देहदृष्टि। जो व्यक्ति देह-आश्रित बुद्धि रखता है, उसके जीवन का स्तर बहुत उथला होता है। संसार के बहुतेरे प्राणी चर्मदृष्टि वाले हैं। उनकी दृष्टि चर्म पर केन्द्रित होती है। पर इस चर्ममय देह पर दृष्टि डालो तो यह दुनिया की सारी बुराइयों की खान है। शरीर को कभी देखने की कोशिश की? कभी मन में ऐसा विचार आया कि शरीर से ज्यादा घिनौना लोक में कुछ है ही नहीं। शायद नहीं आया। क्यों? इसके ऊपर चर्म की चादर मढ़ी हुई हैं, निज और पर को देखोगे तो इससे ज्यादा घिनौना और कुछ भी नहीं है।
देह अपावन अथिर घिनावन यामें सार न कोई।
इस अपावन देह को देखोगे तो सबकी देह की दशा यही है। ऊपर से सुहावनी है, अन्दर से घिनावनी है। दुनिया में जितनी भी गन्दगी प्रकट होती है वह कहाँ से होती है? देह से होती है। गंगा का पवित्र जल भी हमारे शरीर के स्पर्श से गन्दा हो जाता है। गन्दा होता है कि नहीं होता है? किसी को गंगाजल से नहला दो और कहो कि लो यह गंगा का जल है। नहीं। यह शरीर का स्वभाव है लेकिन इसके बाद भी लोगों का आकर्षण शरीर पर ही होता है, क्योंकि ऊपर से बड़ा अच्छा दिखता है। जैसे कोई मल भरे मटके को ऊपर से नीचे तक फूलों से सजा दें तो पता नहीं लगता कि अन्दर क्या है, ऊपर की सजावट दिखती है, पर एक सुई की नोक बराबर भी पंचर हो जाए और उसके भीतर का मेटेरियल बाहर निकल जाए तो ? सन्त कहते हैं- चमड़े की देह है, चर्म की देह है, इस देह में अनेक प्रकार की विकृतियाँ हैं, विकार हैं, रोग हैं। इसके प्रति मुग्ध मत हो। इसमें ज्यादा रस मत लो, यह अशुचिता का पिण्ड है। तो क्या करूँ? छोड़ दूँ? जैसे गन्दगी को देखकर घृणा से भर जाते हैं, वैसे ही शरीर से घृणा करूँ? कहते हैं- नहीं, इस शरीर की एक बड़ी विशेषता है। सब प्रकार के घिनौने द्रव्यों से बनने के उपरान्त भी शरीर की एक विशेषता है। क्या विशेषता है? यह रत्नत्रय का साधन है।