दिव्य विचार: अपने भीतरी गुणों को पहचानिए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आप लोग रोज बोलते हैं। यह तो अपवित्र है। लेकिन इस अपवित्र देह में भी ऐसी योग्यता है कि रत्नत्रय के प्रताप से यह पवित्र बन जाती है, पूज्य बन जाती है। अपवित्र देह को पवित्र करने का रास्ता अपनाओ, रत्नत्रय को अंगीकार करो। रत्नत्रय क्या है? हमारा धर्म। धर्म को धारण करने से अपवित्र देह भी पवित्र बन जाती है। ऐसे स्वाभाविक तौर पर अपवित्र कहलाने वाली काया में भी रत्नत्रय के प्रताप से पवित्रता प्रकट होती है। सन्त कहते हैं रत्नत्रय को धारण करो और जब तक रत्नत्रय धारण न कर पाओ तब तक रत्नत्रय के धारकों का आदर करो, उनका अनुकरण करो। अगर किसी ने रत्नत्रय धारण किया है तो उसके ऊपर रूप को मत देखो, भीतरी स्वरूप को देखो। किसी भी व्यक्ति के जीवन से तुम कुछ पाना चाहते हो तो उसकी बाहरी पर्सनेलिटी को मत देखो, उसके भीतरी गुणों को पहचानने की कोशिश करो। एक व्यक्ति बड़ा रूपवान है, पर एकदम दुर्बुद्धि है और एक व्यक्ति काला कलूटा है, पर महागुणी है, आपके लिए कौन काम का है? मैं पूछना चाहता हूँ तुम्हारा आकर्षण किसमें है? जो रूपवान है। बस, यहीं ठगे जाते हो। जो चर्म में दृष्टि रखते हैं, वह ठगे जाते हैं और जो मर्म को पहचानते हैं वह पूजे जाते हैं। यह ऊपर का चर्म है। ऊपर की आकृति क्या है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, भीतर के तत्व को पहचानो। सीप छोटी हो या बड़ी, मूल्य उसके मोती का है। दीप मिट्टी का हो या सोने का, मूल्य उसकी ज्योति का है। हमारे अन्दर मोती है या नहीं, ज्योति है कि नहीं, इसे पहचानो। बहुत व्यापक सन्दर्भ में निर्विचिकित्सा को समझना चाहिए। एक समय था जब मोक्षमार्ग का अनुकरण करने वाले मुनियों की इस मुद्रा को देखकर लोगों को तकलीफ होती थी। आप लोगों को नहीं है? अब तो आम जनता में भी आ गया इसलिए मैं उस सन्दर्भ में चर्चा नहीं करूँगा। मुनि-तन मलिन न देख घिनावै। किसी को घिन नहीं आएगी, पर हाँ, आज भी लोगों की दृष्टि ऊपरी चमक पर ज्यादा है।