दिव्य विचार: भिखारी नहीं, भक्त बनकर भगवान के पास जाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: भिखारी नहीं, भक्त बनकर भगवान के पास जाओ- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि मूढ़ता से भी बाहर आओ। याचक वृत्ति से भगवान के चरणों में जाना एक प्रकार की मूढ़ता हैं। भक्त बनकर भगवान के चरणों में जाओ, पुजारी बनकर भगवान के चरणों में जाओ, भिखारी बनकर नहीं। यह मूढ़ता होती है। देव के आगे मूढ़ता, गुरु के आगे मूढ़ता। जिस किसी को गुरु मान लेना गुरुमूढ़ता है। अपने गुरु के पीछे लड़ बैठना भी एक प्रकार की मूढ़ता है। इस मूढ़ता से बाहर जाओ, उनके गुणों का अनुकरण करो, उनके आदर्शों पर चलो। शास्त्र के विषय में भी मूढ़ता है। जिस किसी शास्त्र को अपना आदर्श मानना तो मूढ़ता ही है। जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा प्रतिपादित शास्त्र को पढ़ने वाले लोग भी शास्त्रमूढ़ बन जाते हैं। पर कब? जब शास्त्र के शब्दों को पकड़ लेते हैं और उसके आशय को भूल जाते हैं तब। निश्चय में ऐसा है, व्यवहार में ऐसा है। इस गाथा में ऐसा लिखा है, उस गाथा में ऐसा लिखा है। गाथा में इसलिए थोड़े ही न लिखा है कि तुम आपस में लड़ो, वह तो इसलिए लिखा है कि उसको पढ़ो और अपने भीतर गढ़ो। मैं अंगुली से चाँद को दिखाऊँ कि देखो ! यह चाँद कितना सुन्दर है और कोई आदमी मेरी अंगुली पकड़ बैठे तो मैं उसे क्या कहूँगा? मैं कह रहा हूँ भैया! अंगुली छोड़ो। बोले कैसे छोडूं, इसी ने तो चाँद को बताया। मैंने अंगुली चाँद को देखने के लिए बताई थी कि अंगुली पकड़ने के लिए बताई थी? समयसार में आचार्य कुन्दकुन्द ने हमें आत्मा का स्वरूप बताया अपनी अलग-अलग गाथाओं में। हम आत्मा के स्वरूप को भूल गए और गाथा को पकड़कर लड़ रहे हैं। तो क्या है? शास्त्र भी शस्त्र बन जाते हैं, यदि हम उस पर अपना आग्रह थोपने लगते हैं। इसलिए शास्त्र नहीं, शास्त्र का आशय पढ़ें। शास्त्रों में आत्मा नहीं है, शास्त्रों में कल्याण नहीं है। कल्याण किसमें है? उस शास्त्र का आशय समझें और अपने जीवन में उतारें। आप लोग सड़क पर चलते हो, माइल स्टोन लगे रहते हैं। कई जगह नक्शे बने होते हैं। आप उस नक्शे को पकड़कर बैठ जाओ तो मंजिल पर पहुँच जाओगे?