दिव्य विचार: सुखी होना या दुखी होना सब हमारे ऊपर निर्भर है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज बात 'स' की है, सुखी होने की है, सुखी होना या दुःखी होना, सब कुछ हमारे ऊपर निर्भर है। हम खुद ही खुद को सुखी बनाते हैं और खुद से ही खुद को दुःखी बनाते हैं। हमें कोई बाहर से सुखी या दुःखी बनाने वाला नहीं है, हमें सुखी या दुःखी बनाता है- हमारा अपना नजरिया, हमारा अपना दृष्टिकोण। हम चीजों को किस दृष्टि से देखते हैं? हमें जीवन मिला है, जीवन की व्यवस्थाएँ मिली हैं, हम जीवन और जीवन की व्यवस्थाओं को किस तरीके से देखते हैं, सब कुछ उस पर निर्भर करता है। हमारे मन में क्या है, शिकायत है या अहोभाव ? ज्यादातर लोगों से आप मिलो तो कुछ न कुछ शिकायत ही सुनने को मिलेगी। प्रायः लोग सदैव कमियों की ओर इंगित करते हैं पर कभी अहोभाव मन में नहीं आता। भगवान के चरणों में तुम रोज जाते हो फरियादी बनकर, कभी धन्यवाद का भाव लेकर भगवान के चरणों में जाने का मन बना? फरियादी बनकर भगवान के चरणों में जाने वालों की तो लाइन लगी है, जो दस रुपये का नारियल भगवान के चरणों में अर्पित करता है और करोड़ों की चाह लेकर भगवान के चरणों में जाता है लेकिन ऐसे लोग बहुत कम मिलेंगे, जो भगवान के चरणों में जाकर उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद दें कि प्रभु मुझे जितना दिया, वह मेरे लिए कम नहीं। आज मैंने जो पाया, वह मेरे लिए कम नहीं, हकीकत में तो मैं इसके लायक भी नहीं था। ऐसे लोग कहाँ हैं? बन्धुओं ! आज मैं आपको सुखी होने के कुछ मन्त्र बता रहा हूँ- सबसे पहला सूत्र-सकारात्मक बनें। अगर आपका नजरिया सकारात्मक होगा तो शिकायतें अपने आप खत्म हो जाएँगी। जब तक मन में शिकायतें हैं तब तक जीवन दुःखी, दुःखी बना रहेगा। अपने मन की शिकायतों को समाप्त करना चाहते हो तो हर बात को सकारात्मक रूप में देखने की कोशिश कीजिए।