दिव्य विचार: मृत्यु निश्चित है फिर डरना क्यों? - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: मृत्यु निश्चित है फिर डरना क्यों? - मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि जिस दिन हमने जन्म लिया, उसी दिन मृत्यु का दिन निश्चित हो गया था। संसार में एक ही चीज ऐसी है जो एकदम निश्चित है और एक ही चीज ऐसी है जो एकदम अनिश्चित है, वह है मृत्यु । मृत्यु होगी, यह निश्चित है, पर कब होगी? यह अनिश्चित है। जब होनी है तब होगी। मुझे दुर्घटनाग्रस्त न होना पड़े, मेरी आयु ऐसे ही नष्ट न हो जाए, मैं कुत्तों की मौत न मरूँ, मैं भगवान् का नाम दिक्कत नहीं, लेकिन मरूँ नहीं, यह असम्भव है। सम्यग्दृष्टि कहता है कि यह प्रकृति स्मरण करते हुए मरूँ, मुझे अस्पताल में न मरना पड़े, यह सावधानी रखने में कोई का नियम है, जिसने जन्म लिया है, उसका मरना निश्चित है।

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः मृतस्य च ध्रुवं जन्म।

जन्म लिया है तो मरना निश्चित है और मरा है तो पैदा होना पक्का है। इसको कोई टाल सकता है? तन का जन्म है, तन का मरण है। आत्मा तो न जन्मा है, न मरा है। वह अजर-अमर है। जिस मरण से मैं डर रहा हूँ, ऐसे मरण अनन्तों बार कर चुका। जिस जन्म की मैं चिन्ता कर रहा हूँ, ऐसे अनन्तों जन्म धारण कर चुका हूँ। अतीत में बार-बार जन्म और बार-बार मरण के अतिरिक्त मैंने और कुछ किया ही नहीं। इसलिए सम्यग्दृष्टि मरण से डरता नहीं, मरण को सार्थक बनाने के लिए सचेत जरूर रहता है। मेरा समाधिमरण हो, सुमरण हो यह सोचना कभी बुरा नहीं, इससे डर नहीं होगा, लेकिन कहीं मैं मर जाऊँ? कहीं मर न जाऊँ? क्या मरने से बच जाओगे? दुःख में कभी न घबरावें चौथे प्रकार का भय है वेदनाभय। वेदनाभय यानी बीमारी का भय, बीमारी न हो जाए, मैं बीमार न पड़ जाऊँ। नहीं, टेंशन लेने की कोई बात नहीं। बीमारी हुई है, चिकित्सा करो, हर कोई बीमार होता है।

शरीरं व्याधिमन्दिरम्।

शरीर तो बीमारी का घर है। हमारे शरीर में जितने रोम हैं, उतने रोग हैं। अन्तर इतना है कि कुछ रोग प्रकट होते हैं, कुछ प्रकट नहीं होते हैं। यदि तुम्हें बीमारी हो गई है, तो चिकित्सा करो। सावधानी रखो, बीमार न पड़ो। अपनी दिनचर्या नियमित रखो।