दिव्य विचार: सहयोग की प्रवृत्ति को आत्मसात करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि दिल में जगह बनती है या नहीं? दूसरी तरफ किसी व्यक्ति से आपको को-ऑपरेशन की उम्मीद हो कि यह मुझे को-ऑपरेट करेगा, सहयोग देगा लेकिन सामने वाले से वह सहयोग नहीं मिलता तो उस घड़ी में उस व्यक्ति के प्रति तुम्हारे मन में क्या भावना आती है? क्या होता है? उससे प्रेम पनपता है? दिल में उसके लिए अच्छी जगह बनती है? क्या होता है? अरे ! यह आदमी बड़ा खुदगर्ज है, मतलबी है, स्वार्थी है, घटिया आदमी है। न जाने तुम्हारी जबान से कैसे-कैसे शब्द निकलते हैं। उस व्यक्ति के प्रति हृदय में प्रेम नहीं, नफरत की भावना पनपती है। एक सूत्र निकाल लो, यदि तुम लोगों को कोऑपरेट करोगे तो सबका प्रेम पाओगे और जिसे को-ऑपरेशन की आवश्यकता है उसे को-ऑपरेट नहीं करोगे तो उपेक्षा के पात्र बनोगे। चाहते हो कि सब मुझसे प्रेम करें? हर व्यक्ति चाहता है कि सब मुझसे प्रेम करें। बहुत अच्छी बात है। सामने वाला तुमसे प्रेम करे पर तुम अपने आपको इस लायक भी तो बनाओ कि लोग तुमसे प्रेम कर सकें। अगर हम प्रेम करने लायक नहीं होंगे तो कोई हमसे प्रेम क्यों करेगा? फूल में सुगन्ध ही नहीं होगी तो भँवरे आकर क्यों बैठेंगे? सन्त कहते हैं- यदि तुम चाहते हो कि दुनिया तुमसे प्रेम करे तो तुम सबसे पहले को-ऑपरेशन की प्रवृत्ति को आत्मसात करो। एक-दूसरे को को-ऑपरेट करना सीखो। एक बात बताऊँ, जिससे प्रेम होता है उसको व्यक्ति को-ऑपरेट किए बिना नहीं रहता। किसी व्यक्ति के प्रति तुम्हारे मन में प्रेम है, वह मुश्किल में है, बिना को-ऑपरेट किए रह सकते हो क्या? अरे महाराज ! हर सम्भव कोशिश करते हैं उसे उसकी मुश्किल से कैसे निकालें और जो आवश्यक होता है सहयोग करते हैं। क्यों करते हो? किसी से प्रेरणा पाकर? कोई प्रवचन सुनकर? क्यों करते हो? तुम्हारे मन का प्रेम तुम्हें वाचाल करता है और दौड़ा देता है कि नहीं, ऐसा मुझे करना ही है। यह अन्दर की एक भावना है। करना ही है यह सोचने की भी बात नहीं।