दिव्य विचार: खुदगर्ज न बनें, कोऑपरेट करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: खुदगर्ज न बनें, कोऑपरेट करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अपने आप मन भागता है। एक सम्यग्दृष्टि का नेचर बहुत को-ऑपरेटिव होता है। वह सबके प्रति को-ऑपरेशन का भाव रखता है। आप अपने मन से पूछिए कि तुम्हारा जीवन, तुम्हारा मन कितना को-ऑपरेटिव है? घर-परिवार से शुरुआत करो। घर, परिवार, कुटुम्ब, समाज, संस्कृति और राष्ट्र कहाँ जा रहे हैं? तुम अपने घर-परिवार में एक-दूसरे को कितना को-ऑपरेट करते हो? बोलो, है आदत? घर में देवरानी-जेठानी है। जेठानी का काम देवरानी और देवरानी का काम जेठानी करने को कितनी तत्पर रहती हैं? बड़ा भाई-छोटा भाई है। बड़ा भाई छोटे भाई के काम को अपना काम या छोटा भाई बड़े भाई के काम को अपना काम मानकर कितनी तत्परता दिखाता है ? बोलो... कितने कमजोर हैं हम अन्दर से? बातें बड़ी-बड़ी करते हैं पर जीवन का स्तर बड़ा उथला नजर आता है। मनुष्य भीतर से दिनोंदिन संकुचित होता जा रहा है। यह संकीर्णता उसकी क्षुद्र मनोवृत्ति का परिचायक है। अपने हृदय की संकीर्णता को खत्म करना चाहिए। प्रेम, अपनत्व और आत्मीयता की नींव डालनी चाहिए। प्रेम बढ़ाओ, एक-दूसरे को सहयोग दो। अपनापन लगने लगेगा तो सहयोग की भावना जरूर आएगी। अपनापन लगना चाहिए। जो व्यक्ति खुदगर्ज होता है वह जरूरत पड़ने से सामने वाले से सहयोग तो भले ले ले या माँग ले पर कभी किसी को सहयोग देने की तत्परता नहीं दिखाता। सच्चे अर्थों में ऐसा व्यक्ति धर्मी नहीं कहला सकता । सम्यग्दर्शन के आठ अंगों में वात्सल्य अंग को सातवें स्थान पर रखा है। इसे हम अपने शरीर से जोड़ते हैं तो यह हमारे हृदय से जुड़ता है। जब हमारा हृदय किसी से प्रेम से भरता है तो क्या करते हैं? छाती से लगाते हैं। वात्सल्य अंग हार्ट है हमारे सम्यग्दर्शन का।