दिव्य विचार: धर्म से विमुक्त व्यक्ति की मदद करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: धर्म से विमुक्त व्यक्ति की मदद करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज कोई भी व्यक्ति धर्ममार्ग से विमुख होता है तो उसके पीछे कई कारण होते हैं। कोई शारीरिक, मानसिक या आर्थिक कारण हो सकता है, कभी पारिवारिक या सामाजिक कारण हो सकता है। चारों कारणों में कोई भी कारण हो, तुम उसको तन-मन-धन से सहयोग देकर उसे सम्हालो। कोई व्यक्ति शरीर से लाचार है। मान लीजिए बीमारियाँ हैं, खूब उपचार कर रहा है पर ठीक नहीं हो रहा, उसकी श्रद्धा डगमगा रही है, दुनिया के टोने-टोटके के चक्कर में पड़ रहा है, धर्म से विमुख हो रहा है। तुम्हारी जिम्मेदारी है उस व्यक्ति को सम्हालने की। उस व्यक्ति को सम्हालो, उसको मोटिवेट करो, जो सम्भव हो अपनी शक्ति और परिस्थिति के अनुरूप उसको संरक्षण दो। भटकता हुआ इंसान रास्ते पर लग सकता है। कोई व्यक्ति मानसिक रूप से पीड़ित है, बहुत ज्यादा तनाव में है और अपनी मनोविकृति के परिणामस्वरूप वह धर्म से विमुख हो रहा है तो उसकी मानसिकता को बदलने का प्रयास करो। उसको ऐसा मोटिवेशन दो कि उसका चित्त मुड़ जाए और वह व्यक्ति डिप्रेशन में जा रहा है तो उससे उभर जाए, धर्म के मार्ग पर लग जाए। दो अच्छे वचन बोल दो, उसके बुझते हुए मन को जगा दो, उसके अन्दर की आशा की किरण जगा दो, वह आदमी फिर से उठकर खड़ा हो सकता है और दौड़ सकता है। शारीरिक कारण से, मानसिक कारण से, आर्थिक तंगी के पीछे भी लोग धर्म से विमुख होते हैं। बहुत सारे ऐसे केस हैं जिनमें व्यक्ति आर्थिक तंगी के शिकार होकर धर्म से विमुख हुए। हमारे समाज में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि यदि कोई व्यक्ति किसी परेशानी से जूझ रहा है तो हम उसकी परेशानी को अपनी परेशानी मानकर उसका निवारण करें। यह साधर्मी वात्सल्य है और यही स्थितीकरण अंग है। है ऐसी व्यवस्था तुम्हारे समाज में? यदि कोई व्यक्ति अपने बुरे कर्मों के निमित्त से या पापोदय के निमित्त से फेल हो गया, व्यापार में नुकसान हो गया, तुम्हारे मन में उसके प्रति संवेदना बसती है? विचार करो !