दिव्य विचार: आप एक आदर्श व्यक्ति की कल्पना करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: आप एक आदर्श व्यक्ति की कल्पना करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अज्ञान के अन्धेरे को अपनी शक्ति के अनुसार हटाकर, जिनशासन के माहात्म्य को फैलाने का नाम, प्रकाशित करने का नाम प्रभावना है। तुम्हें जो मार्ग मिला, तुम्हें जो ज्ञान का आलोक मिला, तुम्हें जो दिव्य प्रकाश मिला, तुम्हें जो दिशा मिली, सबको वही मिले। यह प्रकाश सर्वत्र फैले तो जीवन का रूप ही कुछ और होगा। बन्धुओं ! आज प्रभावना अंग को हमें बड़े व्यापक सन्दर्भ में देखने की आवश्यकता है। जब कभी मेरा ध्यान प्रभावना अंग के ऊपर जाता है तो मुझे दो बातें दिखती हैं- एक प्रभावना करने की और एक प्रभावना होने की। पहली प्रभावना तो स्वतः होती है, दूसरी प्रभावना की जाती है। स्वयं होने वाली प्रभावना चिरस्थायी होती है और की जाने वाली प्रभावना अल्पकालिक होती है। कैसे होगी प्रभावना? मेरी दृष्टि में आठवाँ अंग, अंग नहीं अपितु सात अंगों की फलश्रुति है। थोड़ा सोचो ! जिस व्यक्ति के हृदय में किसी भी प्रकार की शंका या भय न हो, रञ्चमात्र नकारात्मकता न हो, जिसके मन में भोगों के प्रति रुचि न हो, जिस व्यक्ति के हृदय में किसी के प्रति घृणा व नफरत का भाव न हो, जो सबके गुणों का आदर करता हो, जो व्यक्ति किसी भी प्रकार के अन्धविश्वासों का शिकार नहीं होता हो, जो दूसरों के दोषों को अनदेखा करता हो, जो गिरते को थामता हो और जिसके हृदय में आकाश के समान सबके लिए स्थान हो, ऐसे व्यक्ति को देखकर कौन प्रभावित नहीं होगा? आप एक आदर्श व्यक्ति की कल्पना करो। जिसे मैं अपना रोल मॉडल बनाऊँ, तो उसमें क्या चाहोगे? यही सब गुण तो चाहोगे, यही सब अच्छाइयाँ तो चाहोगे, जिसे हम कहें कि जिसके भीतर पॉजिटिव वैल्यूज हैं, वही मेरा रोल मॉडल है। प्रभावी व्यक्तित्व जीवन के लिए अपेक्षित सारे मूल्य इनमें प्रतिष्ठित हो जाते हैं। जिस व्यक्ति का आचार, विचार व व्यवहार अच्छा होता है, उसका प्रभाव अपने आप फैलता है। उसे देखकर लोग प्रभावित होते हैं।