दिव्य विचार: समन्वय बनाने से जीवन आसान होगा- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: समन्वय बनाने से जीवन आसान होगा- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि पहली बात को-ऑपरेशन और दूसरी बात है को-ऑर्डिनेशन । को-ऑर्डिनेशन का मतलब है समन्वय। एक दूसरे को को-ऑर्डिनेट करें। घर में दस सदस्य हों और सभी सदस्यों में आपसी समन्वय हो, तालमेल हो, सामंजस्य हो तो आनन्द है। और यदि दसों दस दिशाओं में चलें तो क्या होगा? एक पूरब एक पश्चिम, एक उत्तर एक दक्षिण, एक दिशा एक विदिशा तो क्या होगा? तमाशा बन जाएगा। जीवन का आनन्द समन्वय में है, एक-दूसरे को को-ऑर्डिनेट करने में है। आप एक-दूसरे के साथ को-ऑर्डिनेट करते हैं या कॉम्पिटीटर बनते हैं? आज को ऑर्डिनेटर कम कॉम्पिटीटर ज्यादा हैं। अगर आप समन्वय बनाकर चलेंगे तो आपके जीवन में माधुर्य आएगा और यदि खींचातानी करोगे तो जिन्दगीभर परेशानी होगी। क्या करते हो आप? महाराज! घर में चार बर्तन हैं, टकराते हैं तो आवाज तो होती ही है। बिल्कुल सही है, बर्तन होंगे तो टकराएँगे और मुझे तुम्हारे बर्तनों के टकराने से कोई तकलीफ नहीं है, किसने कहा बर्तनों का टकराना बुरा है, बर्तनों का टकराना सर्वथा बुरा नहीं है, अच्छा भी है, कब? जब चार बर्तन आपस में टकराते हैं तो टङ्कार होती है, लेकिन जब बर्तनों में आपस में टकराने में एक लय बन जाए और इण्टरनल को-ऑर्डिनेशन हो तो झङ्कार बन जाती है। तालमेल बनाकर बजाओ, तान उत्पन्न होगी। आपस की आवाजें एक-दूसरे मिलें तो झंकार बनें, टंकार नहीं । क्या होता है तुम्हारे साथ? टंकार या झंकार ? तुम कैसा जीवन जीते हो को-ऑर्डिनेशनमूलक या कॉम्पिटीशनमूलक ? तुम एक-दूसरे के पूरक और प्रेरक बनते हो या प्रतिद्वन्द्वी व प्रतियोगी? क्या करते हो? जिस घर के सदस्य एक-दूसरे के पूरक या प्रेरक हों उस घर में हमेशा सौहार्द का वातावरण बना रहता है और जिस घर के सदस्य आपस में प्रतिद्वन्द्वी या प्रतियोगी होते हैं उनके घर में रोज संघर्ष छिड़ता है। क्या चाहते हो सौहार्द या संघर्ष? सौहार्द चाहते हो तो को-ऑर्डिनेशन की प्रवृत्ति अपनाइए ।