दिव्य विचार: आचरण और भावना अच्छी रखिए-:मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: आचरण और भावना अच्छी रखिए-:मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आज भी बहुत सारे परिवार ऐसे हैं जिनके घर के प्रमुख ने जो कह दिया. वह सबके लिए पत्थर की लकीर हो जाती है। उनके इशारे के बिना पत्ता नहीं हिलता। किसके बल पर? उनके व्यक्तित्व में दम है। तुम सामने वाले से जो चाहते हो, उससे अच्छा तुम्हें खुद करना होगा। आज हमारे गुरुदेव इतने बड़े संघ का संचालन करते हैं, उनकी किसी बात को टालने की हिम्मत किसी साधु की नहीं होती। क्यों? आज एक से एक साधु हैं, सबका अपना-अपना प्रभाव है, ज्ञान है, तपस्या है, सब कुछ है, पर अपने गुरु की बात टालने की हिम्मत क्यों नहीं रखते? टाल दें, गुरु क्या कर लेंगे? वह थोड़ी पकड़ने आएँगे और सच में कोई टालेगा तो वह कुछ बोलेंगे भी नहीं। लेकिन क्यों? मालूम है? उनका प्रभाव है। वह जितना कहते हैं उससे कई गुना खुद करते हैं तो कोई टस से मस नहीं होता। प्रभावना को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहली आवश्यकता है भावना में बदलाव । भावना बदलेगी तो तुम्हारी प्राथमिकताएँ बदल जाएँगी। नहीं, मुझे यह कार्य करना है, पहली प्राथमिकता मेरा धर्माचरण, धर्म के क्षेत्र में आगे बढ़कर मुझे चलना है। यह प्रयत्न हो, प्रभावना अपने आप होगी। आज भी जो लोग प्रभावना के क्षेत्र में आगे आते हैं, भावना के कारण आते हैं कि बगैर भावना के? बहुत सारे लोग हैं जिनकी भावना इतनी प्रबल होती है कि सब कुछ वारने को तैयार हो जाते हैं और कई लोग ऐसे हैं जिनको भाव ही नहीं होते। अपनी भावना को ठीक करिए, सोच बदलिए। पहला चरण यह हो कि मेरा आचरण पवित्र बने। आचरण पवित्र होगा, भाव शुद्ध होंगे, लोग मुझसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। एक प्रभावना है आचरण की और एक प्रभावना है बाहर की। आचरण की प्रभावना और वाणी की प्रभावना में बहुत अन्तर है। वाणी में चहक है और आचरण में महक है। आप मेरे प्रवचनों से जितने प्रभावित होंगे, मेरे आचरण से उससे ज्यादा प्रभावित होंगे।