दिव्य विचार: दान देकर धर्म की प्रभावना करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: दान देकर धर्म की प्रभावना करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि आचरण का प्रभाव पड़ेगा, भावना बदलेगी तभी प्रभावना होगी। पहले अपने व्यक्तित्व को प्रभावी बनाइए। प्रभावी बनाएँगे तो आपके भीतर प्रकाश फैलेगा। कहीं दिया जलेगा तो उजाला तो अपने आप फैलता है। फैलाना पड़ता है क्या? लेकिन हमने प्रकाश फैलाया, दीप जलाया तो उस दीप का प्रकाश एक सीमित दायरे से ज्यादा नहीं होगा। इस हॉल में लाइटिंग कर दी, यहाँ लाइट आ गई, पर इतने प्रकाश से काम चलेगा क्या? मैंने अच्छा रास्ता अपनाया। मेरा आचरण अच्छा है, मेरे सम्पर्क में जो आए वह मुझसे प्रभावित हुए और उनका झुकाव जैनधर्म के प्रति हो गया। ठीक है, पर इतने से काम नहीं चलेगा। यह तो होने वाली प्रभावना है। प्रकाश आया, अब करने वाला काम करो। खुद को प्रकाशित करो और इस प्रकाश को सारे जग में फैलाने का प्रयास करो। क्या करो? प्रकाश को फैलाने के लिए क्या करते हैं आप? प्रकाश कैसे फैलता है? बोलो, दीपक जलाओगे, एक लिमिट में रहेगा। टॉर्च मारोगे तो थोड़ा आगे तक जाएगा, लेकिन अगर प्रकाश को स्थायी रूप से सब तरफ फैलाना है तो सारी तरफ लाइन खींच दो और लड्डू लटका दो, सब तरफ प्रकाश ही प्रकाश होगा। होगा कि नहीं होगा? जिनशासन की प्रभावना के लिए प्रयास करो, इस प्रकाश को फैलाने के लिए प्रयास करो। क्या प्रयास करो? जैसे यह मार्ग मुझे मिला, वैसे सबको मिले। जैसे मेरी आँखें खुलीं, वैसे सबकी आँखें खुले। जितना सुख मैं लूट रहा हूँ, वैसा सुख सब लूटें, किसी के जीवन में दुःख न हो, संसार में कहीं मिथ्यात्व का लेशमात्र भी न रहे, सब तरफ सम्यक्त्व का प्रकाश हो, यही तो भावना है। उसके लिए प्रयास करना पड़ता है। प्रकाश की किरणों को फैलाने के लिए प्रयास तो करना पड़ेगा न । तो प्रयास कीजिए। क्या प्रयास करें? धर्मप्रभावना के लिए प्रयास करो। कैसे करो? दान- तपो-जिनपूजा-विद्यातिशयैश्च जिनधर्मः । दान देकर धर्म की प्रभावना करो।