दिव्य विचार: षड़यंत्र मत करो, यह घोर पाप है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: षड़यंत्र मत करो, यह घोर पाप है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनि श्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि जो लोग एक दूसरे के विरूद्ध षड़यंत्र रचते है, अपनी चतुराई और चालबाजी के कारण सामने वाले को अपना शिकार बनाते हैं, अतंतः इसका परिणाम स्वयं के प्रति भी बहुत बुरा होता है। कई तरीके से लोग षड़यंत्र रचते हैं और सामने वाले को षड़यंत्र का शिकार बनाते हैं। कई बार लोग राजनीतिक षड़यंत्र रचते हैं, कई बार आर्थिक षड़यंत्र रचते हैं और कई बार अन्य दूसरे प्रकार के षड़यंत्र को रच करके सामने वाले की छवि को बिगाड देते हैं, उसकी प्रतिष्ठा पर आघात पहुँचाते हैं और उसे परेशान करते हैं। कुछ लोगों की ऐसी प्रवृत्ति बन जाती है। संत कहते है-यह बहुत बुरा कर्म है किसी प्रति षड़यंत्र रचना घोर पाप का कार्य है, पर क्या कहूँ? निहित स्वार्थी के पीछे लोग गैरों की बात तो जाने दीजिए, अपनों के विरुद्ध भी भयानक षड्यन्त्र रचने से बाज नहीं आते हैं। यह मनुष्य के खून में है। इस तरह की दुरभिसन्धि करने की प्रवृति मनुष्य के भीतर है। जिसके प्रति ईष्या होती है, जिसके प्रति द्वेष होता है, उसको या जिससे हमारा स्वार्थ (काम) बाधित होता है उसको, व्यक्ति अपने रास्ते से अलग करने के लिए, उसके प्रति अनेक प्रकार के षड्यन्त्र रचते रहते हैं। जिसमें रज्चमात्र भी उनको संकोच नहीं होता है। लेकिन जब तक सामने वाले का पुण्य प्रबल होता है, कोई कितना भी षड्यन्त्र रचे; उसका बाल-बाँका नहीं होता। कौरवों ने पाण्डवों के लिए कैसे-कैसे षड्यन्त्र रचे? लाक्षाग्रह में पाण्डवों को मारने का कुचक्र रचा, षड्यन्त्र रच करके उन्हें जुए में हराया, सब कुछ किया लेकिन अन्त में क्या हुआ? पाण्डवों का अन्त हुआ या कौरवों का? किसका अन्त हुआ? तुम अपने भीतर झाँककर देखो जब भी व्यक्ति किसी के विरुद्ध कोई षड्यन्त्र रचता है तो प्रारम्भिक तौर पर उसमें वह सफलीभूत होता हुआ दिखाई पड़ता है लेकिन अन्त में उसके परिणाम बुरे होते हैं, कभी-कभी तो मनुष्य खुद के षड्यन्त्र में खुद ही फँस जाता है।