दिव्य विचार: परिवार का सहयोग मत भूलो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि कॉन्ट्रिब्यूशन मतलब 'योगदान'। तुम यह सोचो कि तुम पर कितना बड़ा कॉन्ट्रिब्यूशन है परिवार का, कितना बड़ा कॉन्ट्रिब्यूशन है माँ-बाप का कितना बड़ा कॉन्ट्रिब्यूशन है? है कि नहीं बोलो? माँ-बाप के कॉन्ट्रिब्यूशन के बिना हम जिन्दा रह पाते? महाराज जी ! जिन्दा रहने की बात अलग है, पैदा ही नहीं होते। माँ-बाप के बिना इस दुनिया में कोई पैदा हुआ है? माँ-बाप के कारण हमने जन्म ही नहीं लिया, माँ-बाप ने हमें जीवन दिया। जीवन हाँ, पैदा करके किसी झाड़ी में फेंक दिए होते तो क्या होता? या हमारी आज की पढ़ी-लिखी माताओं की तरह माँ होती और पेट से परलोक पहुँचा दी होती तो क्या होता? अगर जन्म देने के बाद हमें समय पर दूध नहीं पिलाया होता, बीमार पड़ने पर डॉक्टर को नहीं दिखाया होता तो हमारा क्या होता? कदम-कदम पर हमारे संरक्षक बनकर हमारे जीवन को बचाया नहीं होता तो क्या होता? जीवन दिया न? यह कॉन्ट्रिब्यूशन किसका है? इतना ही नहीं जन्म दिया, जीवन दिया, म्युनिसिपालिटी के भरोसे नहीं छोड़ा, पढ़ाया-लिखाया, योग्य बनाया, संस्कार दिए, उसका ही नतीजा है कि एक सभ्य मनुष्य की भाँति हम समाज में अपना स्थान पा रहे हैं। अगर माँ-बाप ने संस्कार नहीं दिए होते तो तुम लुच्चे-लफंगे बने होते, अपराधी बने होते और किसी जेल की सलाखों में बन्द होते । माँ-बाप का कॉन्ट्रिब्यूशन है या नहीं है? याद है? तुम्हारे जीवन के निर्माण में तुम्हारे परिवार का कॉन्ट्रिब्यूशन है कि नहीं? परिवार के एक-एक सदस्य ने तुम्हें गोद में खिलाया, तुम्हारे सुख-दुख में अपना साथ निभाया, जब-जब तुम्हारा मन बुझता हुआ लगा तो उसे जगाया, परिवार का यह कॉन्ट्रिब्यूशन कम है क्या? समाज का तो बहुत बड़ा कॉन्ट्रिब्यूशन है कि समाज के दबाव के कारण ही तुम एक अच्छे इंसान बने । यदि सामाजिक दबाव नहीं होता तो तुम आदमी के रूप में हैवान बन जाते। तुम्हारे अन्दर कोई नीति नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता, कोई कर्तव्य नहीं होता।