दिव्य विचार: आलोचना करने से प्रेम नहीं बढ़ेगा- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: आलोचना करने से प्रेम नहीं बढ़ेगा- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते है कि चौथी बात है- आलोचना । आलोचना मतलब क्रिटिसाइज अगरआप एक-दूसरे की आलोचना करोगे तो प्रेम नहीं बढ़ेगा। प्रायः लोग एक दूसरे के दोष निकालते रहते हैं। एक दूसरे की बुराइयाँ करते रहते हैं। चाहे जिससे कहो इसमें ये कमी उसमें ये कमी। संत कहते हैं ये कमी निकालने की प्रवृत्ति ही तुम्हारी सबसे बड़ी कमी है। किसी की क्रिटिसाइज मत करो। उसे प्रेरणा दो, प्रोत्साहन करो, आगे बढ़ाने की कोशिश करो। आलोचना करके तुम कभी आत्मीयता को नहीं बढ़ा सकते व्यक्ति को अच्छे प्रेरणा देकर उसे अपना जरूर बना सकते हो आज कल फैमिली मेनेजमेंट की बात कही जाती हैं बहुत सारे मोटिवेटर अपनी-अपनी तरह से बात करते हैं। कहाँ जाता हैं किसी को क्रिटिसाइज मत करो। क्रीटिगाइड करो। क्रिटिसाइज और क्रीटिगाइड में क्या अंतर हैं? क्रिटिसाइज करने का मतलब हैं- किसी ने कुछ कहा तुम सीधे से उसकी बखिया उधेड़ना शुरु कर दी, आलोचना करना शुरु कर दी, कमी, निकालना शुरु कर दी ये क्रिटिसाइज हैं। क्रिटिगाइड करने का मतलब किसी ने कुछ किया हैं तो उसकी शुरुआत आलोचना से मत कीजिए। उसकी शुरुआत अच्छाई से करिये। जैसे पत्नी ने भोजन बनाया अगर खराब भी बना हैं, और पूछा जा रहा है कि भोजन कैसा बना तो कहिये बहुत बढ़िया बना हैं। तुमने हमारी रुचि का ध्यान रखते हुए भोजन बनाया हैं। भोजन तो तुम बहुत अच्छा बनाती हो, आज थोड़ी सी छोंक में प्रोसेस अच्छी कर दी होती तो इसका स्वाद और अच्छा होता। अच्छाई बोलने के बाद व्यक्ति को कमी दिखाने से सामने वाले को अच्छा लगेगा। ये क्या खाना बनाया, ये भूसा जैसा कुछ रख दिया, टेस्ट का कुछ ख्याल ही नहीं रखा। तुम्हें कुछ आता जाता ही नहीं, तो क्या लगता हैं मन में फिर आप उस व्यक्ति के हृदय में स्थान नही बना पाते।