दिव्य विचार: कटु शब्द बोलने से बचना चाहिए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि बन्धुओं, केवल आलोचना अच्छी बात नहीं हैं। आलोचना के साथ हमें सद्भावना भी रखना चाहिये। खींचातानी होती है इस तरह के शब्दों का प्रयोग करने से आत्मीयता नष्ट हो जाती हैं और उत्तेजना बढ़ जाती है। फिर नोंक-झोंक और शब्दों में भी मर्यादाएँ नष्ट हो जाती है, इससे बचना चाहिये। पति-पत्नी के बीच झिक-झिक हो गई होती रहती हैं। तो इतनी हो गई कि दोनों मे तलाक की बात आ गई। मामला अदालत में पहुँचा। अदालत में पत्नी से पूछा कि तुम इससे तलाक लेना क्यों चाहती हो? पत्नी ने कहा ये मुझको कुतिया बोलता हैं। तो पति ने बोला ये मुझे कुत्ता बोलती हैं। जज ने पत्नी की तरफ देखकर बोला की तुम इसको कुत्ता बोलना बंद कर दो। पत्नी ने कहा मैं इसको कुत्ता बोलना बंद कर दूंगी शर्त ये हैं कि ये भोंकना बंद कर दें। भोंकते रहोगे तो कुत्ता तो बनोगे ही, बदलाव चाहिये। जीवन में स्थाई बदलाव चाहिये। ये बदलाव अगर घटित हो गया हमारे जीवन का रंग ढंग ही परिवर्तित हो जाएगा। तो ये तय कीजिये कि आज से आलोचना बंद और सामने-सामने तो आलोचना कम होती हैं पीठ पीछे ज्यादा होती हैं। बहुत कम सासूएं होती हैं। जो अपनी बहू की प्रशंसा करती हैं। आलोचना ज्यादा करती हैं। और नजरिया भी अलग-अलग होता है सासू अपनी बेटी के विषय में अलग बोलेगी और बहू के विषय में अलग बोलेगी। एक की बेटी की शादी हुई उसकी सहेली ने तुम्हारी बेटी का विवाह हुआ कैसी लगी उसकी ससुराल कैसे है तुम्हारे दामाद, कैसे हैं तुम्हारे संबंधी, क्या बताऊँ बड़ा पुण्य का उदय है। मेरी बेटी को ससुराल क्या, स्वर्ग मिल गया। बहुत अच्छा वातावरण है। उसके तो बड़े मजे ही मजे हैं, कुछ भी काम नहीं करना पड़ता। दस नौकर चाकर है। वह सुबह आठ बजे उठती है। उठने के बाद वह नहा धोकर मंदिर जाती हैं। मैंने अच्छे संस्कार दिए है कि मंदिर जाने के पहले कुछ खाना पीना नहीं, मंदिर जाती है उसके बाद खाती हैं।