दिव्य विचार: भविष्य के प्रति शंका मत करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: भविष्य के प्रति शंका मत करो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि सन्त कहते हैं कि जीवन में कोई अनिष्ट न हो, उसके प्रति सावधानी रखना समझदारी है, पर अनिष्ट की चिन्ता से घबड़ाना पागलपन है। सम्यग्दृष्टि कहता है संसार है, इष्ट-अनिष्ट संयोग-वियोग तो लगे हुए ही हैं। चक्रवर्ती को भी मानहानि का सामना करना पड़ा तो मैं किस खेत की मूली हूँ? मेरे अशुभ कर्म का उदय आने पर सारी दुनिया मेरे खिलाफ होगी, मेरे सगे भी मेरे पास नहीं आएँगे और जब तक मेरा शुभोदय चल रहा है, तब तक मेरा कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता। यह श्रद्धा है। यह श्रद्धा है तो अभय है। यह श्रद्धा नहीं है तो कदम-कदम पर भय है लोग मरे जा रहे हैं कि लोग क्या कहेंगे? लोक है तो लोक में सब चीजें आएँगी। महाराज! क्या सम्यग्दृष्टि बिल्कुल बेखौफ होकर जीता है? आँख बन्द करके चलता है? नहीं, आँख खोलकर चलता है, पर अपना दिमाग भी ठीक रखता है। घबड़ाने से क्या होगा? भय के कारण उपस्थित होने पर दो प्रकार की प्रतिक्रिया होती है- एक आतुरता और एक सजगता । आतुरता एक नकारात्मक आवेग है जो हमें भीतर से तोड़ता है। घबड़ाकर क्या करोगे? मान लीजिए कोई विपरीत स्थिति आपके सामने आ गई। आपको उसका पूर्व संकेत मिल गया, तो हाथ-पाँव ढीला करने से कुछ होगा क्या? बोलो ! नहीं, सम्यग्दृष्टि कहता है जो फ्रण्ट में है, उसको फेस करो। जो सामने है उसका सामना करो। सतर्क रहो। कुछ गलत न हो जाए, उसके प्रति सावधानी रखना तुम्हारा फर्ज है, लेकिन कहीं गलत न हो जाए, गलत न हो जाए, यह रट लगाना पागलपन है। भविष्य के प्रति सतर्क रहो, पर भविष्य के प्रति शंका कभी मत करो। जो कल देगा, वह कल की व्यवस्था भी देगा। जो अभी उपस्थित नहीं, उसके पीछे हम परेशान क्यों हैं? शंका कैसी होती है? बोलो ! बिना मतलब की बातें, यह अज्ञानता है। पर से मेरा क्या नाता है? दूसरा है परलोक-भय । परलोक-भय में भी दो प्रकार का - एक परलोकजन्य भय और एक परलोक-भय। परलोक मीन्स पराये आदमी के द्वारा होने वाला भय।