दिव्य विचार: अहंकार से जीवन की समसरता नष्ट होती है- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज कहते हैं कि पिता और पुत्र के मध्य का संबंध अगर अहंकार से प्रेरित हो तो ये संबंध तुम्हारी जीवन की समरसता को नष्ट कर देगा। आज से तय करो मैं अपने संबंधों के मध्य अहंकार को प्रश्रय नहीं दूँगा, आत्मीयता को बढ़ावा दूँगा। जितनी आत्मीयता प्रगाढ़ होगी जीवन का रस प्रगाढ़ होगा और अहंकार से उत्तेजना ही बढती हैं। हमेशा एक ही बात का स्मरण रखो मान देने के लिये होता हैं, लेने के लिये नहीं। हम मान देकर संतुष्ट हो। जहाँ मान आड़े आता हैं, वहाँ हमारा जीवन छिन्न-भिन्न हो जाता हैं। चाहे पिता हो या पुत्र, पिता पुत्र की योग्यता व काबिलियत का ध्यान रखे उसे प्रोत्साहित करें, उससे आत्मीयता वाले शब्द कहे। अहम् और उत्तेजना से भर कर बाते न करे। बेटा भी अपने पिता को पिता माने। जीवन में जो कुछ भी हैं, वो मेरे पिता की कृपा का फल है। अगर बेटा अहंकारी हैं तो पिता विनम्र बन जाए झऔर बाप अकडू हैं, तो बेटा थोड़ा समर्पित बन जाए। बाप बेटे में एक बार किसी बात को लेकर चिक-चिक हो गई दोनों एक थाली में खाना खाते थे। बेटा नाराज हो गया। उसने कहा- "पापा कल से मैं आपके साथ नहीं खाऊँगा।" बाप ने बात संभाली कहा- "बेटा कोई बात नहीं मैं तेरे साथ खा लूँगा" इस सोच को विकसित करिये। माँ बेटे के बीच भी इगो आ जाता है। कभी माँ ने बेटे को कुछ कह दिया तो बेटा उसको पकड़ के बैठ जाता हैं कि मुझसे ऐसे कैसे कह दिया। माँ बेटे का रिश्ता बड़ा प्रगाढ़ता भरा रिश्ता हैं। लेकिन माँ बेटे के बीच भी कभी अहंकार आड़े आ जाता हैं और मुँह फूला कर बैठ जाते हैं। कई-कई दिन बात भी नहीं करते। माँ बेटे के बीच कोई बात पर खटपट हो गई, माँ ने कुछ टिप्पणी कर दी। बेटे को बुरा लग गया। तुम ने बिना जाने सोचे ऐसा कह दिया, अब मैं तुमसे बात नहीं करूँगा। दोनों के बीच बातचीत बंद, माँ तो आखिर माँ होती हैं। चार पाँच दिन बीते, एक दिन माँ ने चला कर बात किया, पूछा की बेटा तू मुझसे बात क्यों नहीं करता हैं। तू मुझसे सीधी मुँह बात नहीं करती तो मैं तुझसे कैसे बात करूँ? तू जब चाहे तब उल्टा फुल्टा बोलती रहती है। सीधे-सीधे बोलती नहीं हैं। बेटे मैं तुझसे क्या कड़वा बोलती हूँ?