दिव्य विचार: नर्क नहीं जाना है तो मत करो पाप- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: नर्क नहीं जाना है तो मत करो पाप- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि भगवान का डर होना चाहिए, पाप का डर होना चाहिए। दो तरह के लोग हैं- एक व्यक्ति है जो पाप से डरता है और एक व्यक्ति है जो पाप करके डरता है। पाप करने से डरो, पाप करके मत डरो। पाप कर लिया, अब घबराता है, मुँह छुपाता है, मुँह फेरता है, टेंशन दिखाता है अरे अब क्या होगा, पोल खुल गई तो क्या होगा, किसको मुँह दिखाएँगे? पाप करने से डरने वाला धूर होता है और पाप करके डरने वाला शूर बन जाता है। पहले से डरो, हृदय में पाप से डर होना चाहिए कि मैं कोई भी पाप करूँगा, उसका परिणाम केवल मुझे, मुझे और मुझे भोगना पड़ेगा, इसलिए मैं सावधान हो जाऊँ। ऐसा कोई कार्य न करूँ, जिससे मैं अनावश्यक पाप का भागी बनूँ, यह दृष्टि अपने अन्दर होनी चाहिए। है तुम्हारे मन में पाप का डर? बड़ी विडम्बना है, एक भी व्यक्ति इस सभा में है, जो कहे- नरक जाऊँगा, नरक जाना पसन्द करते हो? क्यों नहीं है नरक जाना पसन्द ? नरक में दुःख है और पाप के कारण नरक जाते हो। नरक का कारण पाप है तो फिर पाप करते क्यों हो? पाप से नरक है, ये धर्म सभा में कि बाहर भी? बाहर भी है न, अन्दर से विश्वास है कि पाप से नरक है लेकिन ऐसा विश्वास है, दूसरों के लिए, हमारे लिए नहीं है। हम तो पाप करेंगे, नरक जाएँगे, हम को तो भगवान ने छूट दे रखी है पाप करने की। विचार करो... जो-जो पाप करेगा वह नरकगामी बनेगा, यदि यह सत्य सिद्धान्त है और इस पर तुम्हारी आस्था है तो पाप करने से डरो। पाप का डर होना चाहिए, डर होगा तो जीवन अपने आप सम्हल जाएगा फिर तुम्हें कुछ कहने की आवश्यकता नहीं होगी। यह सकारात्मक डर है, जो जीवन को सम्हाले, जो जीवन को सही दिशा दे, जो जीवन को सुरक्षा दे, जो जीवन के लिए सम्बल बन जाए, ऐसा डर उत्पन्न करो। पाप करेंगे तो नरक जाएँगे लेकिन सब बेखौफ होकर पाप करते हैं। किसी को पाप का सही अर्थ में डर नहीं है, कहने को डर है।