दिव्य विचार: परिवार में प्रेम-भाव जरूरी- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: परिवार में प्रेम-भाव जरूरी- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि सबसे पहली बात हैं प्रेमपूर्ण संबंध। आप अपने सम्बन्ध को मेनटेन करना चाहते हैं तो क्या आपने कभी देखने की कोशिश की कि मेरे सम्बन्धों में प्रेम है या कटुता । कभी आपने सोचा कि हमारे परिवार में जितने भी सदस्य हैं उनके प्रति मेरे मन में कितना प्रेम हैं। कहने को रहता हैं कि हम लोग बड़े प्रेम से रहते है लेकिन अन्दर झांककर देखो कि तुम्हारे आपस में कितना प्रेम हैं। कहा जाता है कि वस्तुतः प्रेम ही हमारे जीवन का प्राण हैं, प्रेम नहीं तो सब कुछ खत्म, जिस घर में आपस में प्रेम होता हैं वो लोग एक दूसरे के साथ हँसते हैं, खेलते हैं, बाते करते हैं। यदि एक दूसरे के प्रति मनमुटाव बना रहता है तो एक दूसरे के अगल-बगल में रहते हैं पर एक दूसरे का किसी को अता-पता नहीं रहता, एक-दूसरे से किसी को लेना-देना नहीं होता। आप देखें कि मेरे घर के सब सदस्यों के प्रति मेरा जो सम्बन्ध हैं वो कितना प्रेम पूर्ण हैं। मेरा मेरे पिता से प्रेम है, मेरा मेरी माँ से प्रेम है, मेरा मेरी पत्नी से प्रेम है, मेरा मेरी पुत्री से प्रेम है, मेरा मेरी बहन से प्रेम है, मेरा मेरे भाई से प्रेम है। और मेरा मेरे बच्चों से कितना प्रेम है, प्रेम है कि नहीं है इसकी कसौटी? मैं आप से पूछूंगा तो आप तो सब बोलोगे कि महाराज प्रेम है, तो ठीक है भैया अपने हाथ से अपनी कॉपी जाँचना चाहे जितने नंबर दे दो छूट है, पर उसकी एक कसौटी हैं अगर तुम कहते हो कि मेरा मेरे पिता से प्रेम हैं। तो तुमसे एक ही सवाल पूछता हूँ कि तुम्हारें पिता तुमसे दो कड़वी बात बोलते हैं तो तुम उसे पचा पाते हो। क्या हो गया किसी दिन पिता ने तुम्हें डाँट दिया, किसी दिन पिता ने तुम्हें दो कड़वी बात बोल दी कदाचित्त न डाँटा हो कड़वी बात न बोली हो, तुम्हारे मन की बात को रोक दिया, तुमने कुछ भावना रखी तो उन्होंने कहा ऐसा नहीं करना। बोलो क्या होता हैं पिता के प्रति प्रेम रहता हैं, कि मूड ऑफ हो जाता हैं। क्या हो गया, कि महाराज बर्दाश्त नहीं होता। आज कल के बेटे तो बाप को ही सुना देते हैं।