दिव्य विचार: जहां श्रद्धा होती है, वहां सहयोग की भावना होती हैं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि तुम लोग कहते हो पिता के प्रति मेरे मन में प्रेम हैं तो संत कहते हैं जिसके प्रति प्रेम हैं उनकी अच्छी बात, बुरी बात सब बर्दाश्त हो जाती हैं। तुम कहते हो पिता की दो बात बर्दाश्त नहीं होती और अपनी गर्लफ्रेंड की चार बातें कैसे सहन कर लेते हो। वो कुछ भी बोल दे तो उसे स्वीकार है वो शिरोधार्य है। और जिस (सम्बन्ध होता है- दूध और पानी जैसा। पानी दूध में मिल जाता है। और दूध पानी या अपने में मिला लेता है। दोनों एक दूसरे में घुला मिला।) पिता ने जन्म दिया, माँ जिसने जन्म दिया, जीवन दिया, संस्कार दिए तो उसने यदि कुछ कह दिया तो बर्दाश्त नहीं, बोलो कहाँ है- प्रेम कहने को प्रेम हैं पर यथार्थ में वहाँ प्रेम जैसा कुछ भी नहीं है अक्सर देखने में लोग कहते हैं एक दूसरे के यह हमारे सम्बन्धी हैं पर मैं आप से एक बात कहना चाहता हूँ कि थोड़ा जाँचने परखने की कोशिश करो कि जिनके साथ तुम रह रहे हो उनके साथ तुम्हारा सम्बन्ध हैं या सम्पर्क तुम जिनके साथ अपना रिलेशन रखते हो तुम्हारा उनके साथ सम्बन्ध हैं या सम्पर्क । सम्बन्ध और सम्पर्क का अंतर जानते हो। सम्बन्ध का मतलब हैं एक-दूसरे से घुल-मिल कर रहना और सम्पर्क का मतलब हैं एक-दूसरे के साथ रहकर अपनी अलग पहचान बनाए रखना। देखो तुम जिनके साथ रह रहे हो, जिनको अपना सम्बन्धी मानते हो उनके साथ तुम्हारा सम्बन्ध हैं या सम्पर्क। सम्बन्ध होता है- दूध और पानी जोडना। दूध पानी में मिल जाता हैं और पानी अपने को दूध में मिला लेता हैं। यह सब घुल मिल कर रहते हैं और जो लोग घुल मिल कर रहते हैं वो लोग एक दूसरे के प्रति जान देते हैं, एक दूसरे के प्रति समय देते हैं। समय होता हैं, स्नेह होता हैं, श्रद्धा होती हैं, सहयोग की भावना होती हैं। और सम्पर्क होता है- तेल और पानी जैसा। तेल पानी में जाता हैं तो पानी के सिर पर बैठ जाता हैं, दोनों साथ रहते हैं पर दोनों का अपना स्वतंत्र अस्तित्त्व होता हैं।