दिव्य विचार: अहंकार से संबंध बिगड़ते हैं- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि लोग परेशान, एक दिन किसी संत का उधर से गुजरना हुआ और लोगों ने अपनी व्यथा संत के चरणों में प्रकट की। संत से कहा कि गुरुदेव ये पेड़ हमारे इलाके की शान है। हम सबका प्राण है। हमारी पहचान हैं। ये पेड़ क्यों सूख रहा है? किसी भी तरीके से इस पेड़ को हरा भरा कर दें। संत ने अपनी दिव्य दृष्टि से उसको देखा और कहा। ये पेड़ कभी भी हरा नहीं हो सकता। सब एक साथ चरणों में आ गए, एक साथ अचम्भे में पड़ गए कि ये क्या पेड़ हरा क्यों नहीं हो सकता गुरुदेव आप ये बताइये कि कौन सा संभव उपाय है। हम सब करने के लिये तैयार हैं। पर आप कुछ ऐसा कीजिए कि ये पेड़ हरा-भरा हो जाए। संत ने कहा कि तुम इसे कितना भी सींचो ये पेड़ हरा होने वाला नहीं हैं इस पेड़ को हरा करना चाहते हो इसे सिंचने में कोई लाभ नहीं होगा। क्योंकि इसकी जड़ में कुछ कीड़े पड़े हैं। जब तक तुम उन कीड़ो को निकाल बाहर नहीं करते तब तक पेड़ को कितना भी सीचों तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा। संत ने कहा कीड़े बाहर निकले कि पेड़ अपने आप हरा-भरा हो जायेगा। बन्धुओं परिवार भी एक पेड़ की भांति हैं। ये तब तक हरा-भरा रहता है। जब तक की ये कीड़ों से सुरक्षित रहता है। इस परिवार की खुशहाली कुछ कीड़ों से नष्ट हो जाती हैं। और आज मैं आपको उन कीड़ों से बचाने आया हूँ। कुल चार प्रकार के कीड़े है। बदहाली के चार कीड़े
आज की चार बाते - वो चार कीड़े हैं, जो हमें निकालना है।
(1) सबसे पहला है अभिमान, अहंकार, अहंकार हमारे संबंधों की हत्या करता है। किसी भी परिवार की समृद्धि या सामर्थ्य परिवार में रहने वाले लोगों की संख्या नहीं, उनके संबंध हैं। तुम देखो, तुम्हारे परिवार में कितने सदस्य हैं और परिवार के सदस्यों के बीच जो संबंध हैं वो कैसे हैं?