दिव्य विचार: दिव्य गुणों को आत्मसात करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: दिव्य गुणों को आत्मसात करें- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि उस दिव्य गुण की अभिव्यक्ति कैसे हो? बहुत महत्त्वपूर्ण सवाल हैं। हम अपने भीतर देवत्व की प्रतिष्ठा कैसे करें? धर्म आचरण का यही मकसद हैं कि हम अपने जीवन में देवत्व को प्रतिष्ठापित करके अपने जीवन की धारा को आगे बढ़ाने की कोशिश करें। जीवन में देवत्व किस भाँति प्रतिष्ठापित हो, जिससे हम अपने जीवन को रसमय बना सके, आनन्द मय बना सके। बंधुओं, हमारे भीतर अनेक गुण समाहित हैं लेकिन वो गुण प्रकट नहीं हो पाते हैं। क्योंकि कई ऐसे कारण बन जाते हैं जो हमारे गुणों को लील जाते हैं। हमारे जीवन की व्यवस्था को बिगाड़ जाते हैं। अपने जीवन में उस दिव्य भाव को प्रकट कर सकते हैं, बशर्ते हम वैसे गुणों को आत्मसात करें। हमारे जीवन की समरसता को खण्डित करने वाला कौन है? हमारे जीवन की मधुरता को लीलने वाला कौन है? हमारे अन्दर के माधुर्य को नष्ट करने वाले कारक कौन हैं? जब तक हम इनको नहीं जानेगें तब तक हम अपने जीवन को आगे नहीं बढ़ा सकते। एक रास्ता है जो हमारे जीवन को खुशहाल बनाता है और एक रास्ता हैं जो हमें बदहाली तक पहुँचा देता हैं। मैं खुशहाली की बात बाद में करूँगा, पहले बदहाली के कारणों को जानना जरूरी हैं। अगर हम बदहाली से बचेंगे तो खुशहाल तो अपने आप बन जायेंगे। एक गांव में एक हरा-भरा पेड़ था काफी ऊँचा पूरा पेड़ उस पेड़ पर सैंकड़ों पक्षी बसेरा करते। अनेक पथिक उसके नीचे विश्राम करते, पूरे इलाके की शान था। हर व्यक्ति को पेड़ को देखकर गर्व होता। अचानक समय कुछ ऐसा आया कि धीरे-धीरे पेड़ के पत्ते पीले पड़ कर सूखने लगे और पेड़ सूखा सो सूखता ही गया। कल तक पूरे इलाके की शान बनने वाला पेड़ एक ठूंठ के रूप में परिवर्तित हो गया। गाँव भर के लोगों के मन में बड़ी चिंता हुई, सबके मन में एक ही बात कि यह पेड़ आखिर सूख क्यों रहा है? पेड़ को हरा-भरा करने के लिये खूब सारे प्रयास किए गये लेकिन सारे प्रयास निरर्थक साबित हो गए।