दिव्य विचार: परिवार के सदस्यो में प्रेम जरूरी- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: परिवार के सदस्यो में प्रेम जरूरी- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि किसी दार्शनिक संत से किसी ने पूछा की स्वर्ग कहाँ हैं? उन्होंनेजबाव दिया जिस घर के लोग आपस में प्रेम से रहते हैं, एक दूसरे के लिए जान देते हों, हमेशा एक दूसरे की बाट जोहते हों सामने वाले की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझते हों समझ लो उसी घर में स्वर्ग बसता है। प्रश्नकर्ताने पुनः पूछा नरक कहाँ बसता है? उन्होंने कहाँ जिस घर के लोग आपसमें लड़ते हों, एक दूसरे का मुंह देखना न चाहते हों, एक दूसरे से कटे-कटे रहते हों, एक दूसरे के खून के प्यासे हों, एक दूसरे के प्रति घृणा और नफरत का भाव भरा हो समझ लेना वहीं नरक है। स्वर्ग और नरक की अवधारणा भारत की बड़ी प्राचीन अवधारणा है। जब भी हम धर्म प्रवचनों में जाते हैं। हमें हमेशा स्वर्ग की बात कहीं जाती हैं। जितने भी धर्म गुरु हैं वे सब स्वर्ग जाने की बात करते हैं। मैं आपसे स्वर्ग पहुंचाने की बात नहीं करूँगा। क्योंकि आपको स्वर्ग पहुँचा दूँ तो आप यहाँ पर नहीं रहोगे तो मुश्किल हो जाएगी। मैं तो चाहता हूँ कि कोई तुम्हें स्वर्ग पहुँचाए तो उसके पास जाना भी मत। स्वर्ग पहुँचाने की बात मैं कतई नहीं करता। तुम्हारे जीवन को स्वर्ग बनाने की बात जरूर कर सकता हूँ। हमारा जीवन स्वर्ग कैसे बने, सबसे महत्त्व की बात हैं। हमने सुना है स्वर्ग में देवताओं का वास हैं और नरक में नारकी रहते हैं। लेकिन देवता कौन? वे जिन के अन्दर देवत्व का भाव हो, दिव्य गुणों को अवतरण हो - देवता हैं। संत कहते हैं कि तुम्हारे घर में भी स्वर्ग बस सकता है। बशर्ते कि तुम अपने भीतर दिव्यता का अवतरण कर लो, अपने भीतर दिव्य भावों की अनुभूतिकर लो, तुम्हारा जीवन दिव्य हो जाएगा।