दिव्य विचार: कर्म सिद्धांत पर भरोसा रखिए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: कर्म सिद्धांत पर भरोसा रखिए- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि अपने मन को टूटने से बचाना चाहते हैं तो हर जगह कर्मसिद्धान्त पर भरोसा रखिए। कैसी भी विपत्ति हो, कैसी भी बीमारी हो, कैसा भी वियोग हो या कोई विश्वासघात करे, कर्मसिद्धान्त पर विश्वास रखो और यह सोचो- यह तो केवल एक निमित्त है, घटना है, घटनाएँ आई हैं, आती हैं और जाती हैं, मुझे उनसे प्रभावित नहीं होना। आज अगर ऐसा होता है तो मेरे अशुभ कर्म का उदय है; कल शुभ कर्म का उदय आएगा यह विपत्ति भी टल जाएगी, टिकाऊ नहीं है। बड़े-बड़े महापुरुषों के जीवन में विपत्ति आई, वह विचलित नहीं हुए तो मैं कैसे विचलित होऊँ। ध्यान रखना ! विपत्ति एक हथौड़े के प्रहार की तरह है जो काँच पर पड़ता है तो चूर-चूर हो जाता है और सोने परपड़ता है तो सोना चमक उठता है। अपना जीवन सोने जैसा बनाओ जो विपत्ति के प्रहार से दमके, काँच जैसा मत बनाओ जो चकनाचूर हो जाए। टूटना नहीं है, अपने आपको मजबूत बनाना है। एकदम जज्बा अपने भीतर जागना चाहिए। ठीक है, अपने कर्म का उदय आया है, बदल जाएगा। राजा रंक होते हैं और रंक से राजा होते हैं, यह तो जीवन का एक क्रम है। गिरकर चढ़ना और चढ़कर गिरना ये हमारे जीवन का एक क्रम है, इसमें घबराने की क्या बात है। कर्म का उदय है, आया है तो चला भी जाएगा। अपने जीवन को हम वापस सम्हाल लेंगे, अपने जीवन को आगे बढ़ा लेंगे, यह विश्वास तुम्हारे मन में होगा तो तुम कभी भी टूट नहीं पाओगे। कर्म का चाहे कितना भी सघन प्रहार ही क्यों न हो, बाल-बांका नहीं होगा। तीसरे नंबर पर हमेशा सकारात्मक रहें। हर बात को सकारात्मक दृष्टि से देखें। जो होता है, अच्छे के लिए होता है। बुराई में अच्छाई देखें, प्रतिकूल में भी अनुकूल व्याख्या करें, दुःख में सुख खोजने की कोशिश करें। विपत्ति में संपत्ति देखने का प्रयास करें, मन कभी टूट नहीं सकता, मन अटूट रहेगा।