दिव्य विचार: गलतियों को मानना सीखो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

दिव्य विचार: गलतियों को मानना सीखो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि संस्कार इतने विकृत हो चले हैं कि वह प्रायः हमारे चित्त को नकारात्मक दिशा में ही खींचते हैं। यहाँ अपने आप को बचाना चाहिए। आज से थोड़ा सोचो कि मैं किसी पर दोषारोपण न करूँ। अपनी गलती को एक्सेप्ट करो, कभी किसी के ऊपर आरोप मत लगाओ। मुझसे गलती हो गई तो हो गई, एक्सेप्ट करने में क्या बुराई है? जिस मनुष्य का मन सरल होता है, वह अपने दोष को स्वीकारने में कभी संकोच नहीं करता और औरों पर दोष लगाने में सदैव शर्मिन्दा होता है। दूसरों के परमाणु बराबर गुण को भी पहाड़ बनाकर अपने हृदय में विकसित करने वाले सन्त कितने हैं? कहते हैं- 'परमाणु बराबर गुण को पहाड़ बराबर बना लो' लोगों ने इसे स्वीकार तो लिया लेकिन संशोधित कर दिया 'परमाणु बराबर दोष को पहाड़ बराबर बनाना सीख लिया।' तिल का ताड़ बना दिया, राई का पहाड़ बना दिया। दोषारोपण की प्रवृत्ति बड़ी विचित्र है। देखो ! दो प्रकार के प्राणी होते हैं- एक मक्खी और एक भँवरा। दोनों को आपने देखा है। भँवरा हमेशा फूल पर बैठना पसन्द करता है। मक्खी के सामने एक तरफ मिठाई का थाल है और दूसरी तरफ विष्ठा। मक्खी मिठाई के थाल को छोड़कर विष्ठा पर बैठना पसन्द करती है। आजकल हमारे समाज में मक्खी की तरह के लोग बहुत हैं, जो बुराई की विष्ठा पर भिनभिनाते रहते हैं। अच्छाई की मिठाई का स्वाद लेना नहीं जानते। भँवरा बनो, मक्खी नहीं। भँवरा बनने का प्रयास करें तो हमारा जीवन निहाल होगा। तीसरी बात है दोषशमन। दोष ग्रहण नहीं करेंगे, दोषारोपण नहीं करेंगे। अब दोष दिख जाए तो उसको वहीं दबाएँगे। महाराज जी ! बहुत कठिन है। बिना देखे दोष बताने की जिसको आदत है, उसे दोष दिख जाए तो पचाना बहुत मुश्किल है। जिसके प्रति आपके मन में प्रेम होता है उसके बड़े-बड़े दोषों को भी आप दबा देते हो, बोलो ! दबाते हो कि नहीं? कहीं ट्रेनिंग लेकर आए हो? जिससे प्रेम होगा उसके दोषों को छुपाओगे।