दिव्य विचार: मन को कभी टूटने मत दो- मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज

मुनिश्री प्रमाण सागर जी कहते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण बात मन का टूट जाना। एक बार व्यक्ति का मन टूट जाता है तो व्यक्ति की स्थिति बड़ी भयंकर हो जाती है। देखिए व्यक्ति का टूटा हुआ सम्पर्क दिखता है, टूटी हुई वस्तु दिखती है, टूटे हुए सम्बन्ध दिखते हैं, टूटा हुआ विश्वास भी दिखता है लेकिन टूटा हुआ मन दिखता नहीं है। किसी व्यक्ति से बोला- यह बड़ा टूटा-टूटा सा लग रहा है, इसका मुँह तो देखो। कोई-कोई व्यक्ति कहता है- मेरा मन टूट गया है। अब क्या देखो? ऊपर से नीचे तो साबुत है, फिर इसका मन कहाँ से टूट गया? टूट कहाँ? बहुत भयानक होता है यह टूटना। एक बार व्यक्ति का मन टूट जाए तो उसे जोड़ना मुश्किल और कठिन सा होता है। सब टूट जाए कोई परवाह नहीं, अपने मन को कभी टूटने मत दो। मन टूट गया तो तुम फिर कभी खड़े नहीं हो सकते। शरीर में हाथ-पाँव टूट जाएँ तो जुड़ सकते हैं, शरीर का कोई अंग टूट जाए तो तुम फिर से जोड़ सकते हो, लेकिन मन टूट जाए तो उसे वापस जोड़ना, खड़ा करना बहुत मुश्किल होता है। आजकल देखते हैं, लोगों का थोड़ी-थोड़ी बातों में मन टूट जाता है, वह हिम्मत हारकर बैठ जाते हैं, रोने जैसी शक्ल बन जाती है। चेहरा एकदम ऐसा लगता है जैसे कि कुम्हलाया-सा-फूल, कुछ समझ में नहीं आता कि वह क्या है और क्या नहीं। मैं आपसे पूछता हूँ- मन कब टूटता है? कभी ऐसी स्थिति हुई कि आपका मन टूटा हो? हाँ, महाराज ! मन टूटता है। कब टूटता है? अति हो जाती है तो मन टूटता है। दरअसल मन कब टूटता है? जब हमारे मन के विरुद्ध कुछ होता है, घटित होता है, जो हम चाहते हैं वह नहीं मिलता, इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती तो मन टूट जाता है। मनुष्य हिम्मत हार जाता है। अचानक कोई अघट घट जाता है तो हम उसका सामना नहीं कर पाते और मन टूट जाता है।